SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ६६५-६६५ ] चजत्यो महाहियारो [ १८७ प्रमं :- शीतलनाथ स्वार्भाने माघ कृष्णा द्वादशीके अपराहमें मूल नक्षत्र के रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ प्रवज्या ग्रहण की ।।६६०॥ एक्कारसि-एम्बन्हे, फागुन-बसे मोह जागे । सबम्मि सपिप-खक, सेयंसो घरह जिम-विश्वं ।।६६१॥ पर्व :.-श्रेयांसदेवने फाल्गुम कृष्णा एकादशी के पूर्वाहमें श्रवण नक्षत्रके रहते मनोहर उपाममें तृतीय उपवास के साथ बिन दीक्षा धारण को ।।६६१।। फग्गुण-कसण-पद्दति-अवरहे वासपुर-सव-गह। रिक्सम्मि निसाखाए, इगि-उस्मासे मनोहरज्जाणे ।।६६२२॥ म:-वासुपूज्य जिनेन्द्र ने फाल्गुन सुदशी के सहारा पहिला मनोहर उखानमें एक उपवास के साथ ना ग्रहण किया ॥६१२।। सहनी x भाषास सिव-बजत्यो, अपर तह साहेदम्मिपणे । उत्तरभहपवास, विमलो गितकमा सदिय-उववासे ॥६६३॥ म :--विमलनाप स्वामीने माघ शुक्ला पतुर्थीके अपराह में उत्तर भाद्रपद नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवास के साथ दोसा ग्रहण को ।।६६३।। जेस्स बहुल-चारसि, अबरहे रेवदोस भवतिए । धरिया सहेदुग-यो, अपंतवेषेण तब-लग्छी ॥६६॥ ब: अनन्तनाथ स्वामीने ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशोके दिन अपराहमें रेवती नक्षबके रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवासके साथ तपो लक्ष्मी थारण की ॥६६॥ सिम-तेरसि-अबरोहे, भद्दपले पुस्सम्मि लवण-तिए । गमिकगं सिद्धाणं, सालि-वणे विक्कम धम्मो ॥६६॥ म:-धर्मनाथ तीर्थकरने भाद्रपद शुम्सा घोदशीफे मपराहमें पुष्य नक्षत्रके रहते शासि-वनमें तृतीय उपवासके साथ सिनओको नमस्कार कर जिन दीक्षा ग्रहण की ॥६६५।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy