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________________ तिलोषपती [ गापा ६५६ - ६६० भगवान् सुमतिना वैशाली व पूर्व मंत्री नक्षत्र के रहते सहेतुक जनमें तृतीय उपवासके साथ दीक्षित हुए ।। ६५५॥ १६६ ] :- पद्मप्रभ जिनेन्द्र कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीके अपराह्न चित्रा नक्षत्र के ( उदित ) रहते मनोहर उद्यान में तृतीय उपवास के साथ दीक्षित हुए ।। ६५६ ।। चेतासु किन्ह-सेरसि अवर कित्तियस्स किं । पउमपही जिणियो, तहिए सबसे मनोहरज्जाके ।।६५६ ।। अर्थ :- सुपार्श्वनाथने ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशीके पूर्वाह्न में विशाखा नक्षत्रके रहते सहेतुक बनमें तृतीय उपवासके साथ जिन दीक्षा ग्रहण की । ६५७।। सिव-चारसि पुष्वष्हे, जेटुस्स विसाहभम्मि जिम-विष गेहेवि सनिय जवणे, सुपासदेवो सहेदुगम्मि द ||६५७ ।। १. म. २. जिये । अणुराहाए पुस्से, बहुले एमारसीए अबर 'दो घर तवं सम्बत्म-वर्णाम्म तविय-उपवासे ।।६४८ || सच:- चन्द्रप्रभने पौष कृष्णा एकादशीके अपरा सके साथ सर्वाधिवन में तप धारण किया ।। ६५८ ।। अणुराहाए वुस्से, सिद- पसेकारसीए अगरहे । पुष्व तविए सबनम पुम्फयंत जिनो ।। ६४६ ॥ १ प :- पुष्पदन्त तोयंकर पौष शुक्ल एकादशों के अपराह्नमें मनुराधा नक्षत्र के रहते पुष्पनमें तृतीय उपवास के साथ प्रत्रजित ( दीक्षित ) हुए ।।६५६ ॥ अनुराधा नक्षत्रके रहते तृतीय उप माघस्स किन्ह-बारसि अबरहे मूलभम्मि पव्वस्था । गहिया सहेदुग-वर्ण, सीयल-येवेन सदिय-उबासे ॥६६० ॥ स. ब. क्र. ज. य. न. Y. C. W. (GÈ 1 २ ८. ब. क. ज. य. न. पवजिय । ३. द. क. ज.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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