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ऋषभादि तीर्थंकरोंकी दीक्षा तिथि, पहर ( कान ) नक्षत्र, वन और दीक्षा समय उपवासों के प्रमाणोंका निरूपण -
वार्या : ६३२
बेला- सिद-नवमीए दिए पहरस्मि उत्तरासादे । सिद्धस्मथचे उसो, उपवासे छुमम्मि निक्सो ॥ ६५१ ।।
अर्थ :- भगवान् ऋषभदेव चैत्र कृष्णा नवमीके तीसरे पहर उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें सिद्धार्थं वनमें षष्ठ ( मासके ) उपवासके साथ दीक्षित हुए ।।६५१ ।।
माघस्स सुक्क- नवमी - अवरम्हे रोहिनी रम्मे "सहेबुगधने, अद्रुम- भर्त्ताम्म
:- अजित जिनेन्द्र माघ शुक्ला नवमरेके दिन अपराष्ट्रमें रोहिणी नक्षत्रके रहते सुन्दर सहेतुक वनमें प्रष्टुम तके माथ दीक्षित हुए ।। ६५२ ।।
शिवकता ।
प्रजिय-जिलो । निक्कतो ||६५२ ॥
भागतिर पुगिनाए तदिए पहरम्मि तदिय उबवासे ।
अट्ठाए निक्कतो. संभव-सामी सहेदुर्गास्म वने ।। ६५३ ।।
अ : सम्भवनाथ स्वामीने मगसिरकी पूर्णिमाको तृतीय पहर में ज्येष्ठा नक्षत्र के रहते सहेतुक वनमें तृतीय उपवास के साथ दीक्षा महरण की ।।६५३ ॥
सिव-बारसि पुण्यहे, माघे माझे पुणम्बस-रिक्खें । उगवणे उबवासे, सविए अभिनंदनीय मिनकं ।। ६५४ ।।
अर्थ :- अभिनन्दन भगवान्ने माघ शुक्ला द्वादशी के दिन पूर्वामें पुनर्वसु नक्षत्र के रहते उपवन में तृतीय उपवासके साथ दीक्षा धारण की ।।१६५४।।
नवमी पुरुषहे, मघासु बाइसाह-सुक्क पक्ामि । सुमई सहेदुगवणे, णिक्कतो सदिय-बवासे ।। ६५५ ।।
१. ८. ब. रु. ज. मन विकता
... सुहेबुब ।
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