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________________ अमा :.. ETHERE तिलायपत्ती हाराज या : ६४७-५५० मावा पिदा कलस, पुत्ता बंधू य इर-माला य । बिद्ध-पगट्ठाइ सणे, मणस्स गुसहा सल्लाई ॥६४७॥ प:--माता, पिता, परनी. पुत्र और बन्धुपम इन्द्रलाल साहश क्षणमात्रमें देखतेदेखते नष्ट हो जाते है ये सब मनके लिये दुस्सह पाल्य हैं ।।६४७।। देवगतिके दुःख एवं उपसंहारपप्ताए थोहि, सोमवं भाषेहि वि -'गरुबाई। दुखलाइ माखसाई वेष-गवोए अणुभवति ॥६ ॥ :-देवगतिमें किञ्चित् सुखको प्राप्त हुए ओव उस ( मुख ) के विनाशकी चिन्ता रूप भावोंसे नित्य ही महान् मानसिक युःखों का अनुभम किया करते हैं ॥६४८।। चदूग चच-गरीभो, वारुण-दृग्वार-एक्स-साणीयो। परमाणेद-गिहाणं, गिम्बार्ण पासु बच्चामो ।।४।। प:-अतएव पारण पोर दुनिवार दुःखोंकी खानिभूत इन पारों गतियों को छोड़कर हम उस्कृष्ट मानन्दके निधार-स्वरूप मोक्षको शीघ्र ही प्राप्त करे | ऋषभादि तीर्थकरोंके दीजा-स्थामतम्हा मोक्खस्स कारशारदबीएनेमी, सेसा तेबोस तेस तिस्पयरा । निय निय-जार-पुरेसु गिम्हसि जिणिव-विसाई' ॥६५॥ म:-इसीलिए मोसके निमित्त उन पौबीस तीर्थदरों से (भगवान्) नेमिनाप द्वारापती नगरीमें और शेष तेईस तीपंकर अपने-अपने जन्म-स्थानोंमें जैनेन्द्री-दीक्षा ग्रहण करते है ।।६।। यो। २... ब... प. ३. दुसमा। .. . ज. प. उ. नववाहि । .... ... वारसदीये।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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