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गाथा : ६४३-६४६ ] बजत्यो महाहियारो
[ १८३ :- तथा, मयन संज्ञामे तिलोंकी नाली में तप्त लोहेके प्रवेशाके सदृश योनिमें बहुतसे जीवोंका वध होता है ।।६४२॥
इह लोगे खि महल्लं, वो कामस्स वस-गवो पचो।
काल-गदो वि अभंत, बाखं पायेवि कामंपो ।।६४३।।
प्रबं :-कामके वशीभूत हुषा पुरुष इन लोकमें भी महान् दोषको प्राप्त होता है मौर कामान्ध होता हुआ मरकर परलोकमें भी अनन्न दुःख पाता है ।।६४३॥
सोभिय-सुपकप्पाइम-देहो दुषलाइ गम्भ-बासम्मि ।
साहिबूण बारुनाई, पिट्ठों पावाइ कुना पुणो ॥१४४।।
मपं:-शोएित और शुक्रसे उत्पन्न हुई देहसे युक्त जोद गर्मवास में महा भयानक दुःख सह कर निर्लज्ज हुमा फिरसे पाप करता है ।।६४४ ।।
बाहि-रिणहारणं" बेहो, बहु पोस-सुपोसियो वि सव-बार । अस्थी पवरण-परणोल्लिय पादप-दल-चंचल-सहाबो ॥६४५।।
:-बहुतसे पुटिकारक पदार्थों द्वारा सैकड़ों बार अच्छी तरह पोषा गया भी व्याधियों का निधानभूत यह शरीर पवनसे प्रेरित वृक्षके पत्ते सहम पंचल स्वभाव वाला है ।।६४५।
तारणं तडित्तरलं, विसया-परंस विरस-विस्थारा । अस्थो अणस्य-मूलो, अविचारियन्सुवरं सव्वं ।।६४६॥
धर्म :-विषयोंसे प्रेरित (यह ) तारुण्य बिजली सहश चंचल है और अयं इन्द्रियविषय ) नीरसता पूर्ण हैं, अनर्थ के मूल कारण है। इस प्रकार में सब ( अनके मूल ) मात्र अविचारितरम्य ही है ॥६४६।।।
...... क. न. य, व. मा। २. द. मुकंपाइय, 4. मुकंपाइय, क. य. अ. न. सुप्माश्य । ३. घ. दोहो. क. क. ज. य. उ. दाहो। ४. व. क. अ. प. विट्ठो, ब. उ. विट्ठो। ...ब. क. उ. गिगाई । ६. २. क, प. प. उ. प्रार। ५. ६.. क. प. प. उ. पशोधिय । ८. ८. ब. क. उ. प. उ. बहामा ।