________________
[ १७६
गापा : ६३४-६२१ ]
चउत्थो महाहियारो शर्मक ... शामा शो
है तार-तासग-बषण-जाहण-संधण-विमेवण' दमन । कामवण-मासा-विवण-मिल्संखणं' चेष ॥२४॥
छैदल-मेहन-बहणं, गिप्पीपण-गालणं क्षुषा तण्हा ।
भरलग-मदन-मनन, विकसणं सोदमुन्हं च ।।६२५।।
प:--सिमंध्यगतिमें, ताड़ना, त्रास देना. राधना, बोझा लादना, विहित (मलादिको माफारसे जलाना) करना, मारना, वमन करना. कानोंका वेदना, नाक वैधना, अण्डकोशको कुचलना (वधिया करना ), छेदन, भेदन, दहम, निष्पीडन, गालन, क्षुषा, तृषा, मक्षण, मदन, मसन, विकतन, पाौत और उष्ण ( आदि दुःख प्राप्त होते है ) ॥६२४-६२५।।
एवं अणंत-लुतो, मिन-बदुर्गाव-णिगोव-मग्झम्मि।
जम्मान-मरण रहदें, अणंत-सत्तो 'परिगहो जं ॥६२।।
प्रबं:-इस प्रकार अनन्तबार नित्य निमोद और चतुर्गति ( इतर ) निगोदके मध्य जाकर अनन्तबार जिस जन्म-मरणरूप प्ररहट ( षटीयन्त्र ) को प्राप्त किया है ( उसके विषयमें विचार करना) ॥२६॥
मनुष्यगति के दुःखों के अन्तर्गत गर्भस्प बालकका क्रमिक विकासपुष्वकर-परव-गुरुगो, मादा-पिपरस्स रत सक्कानो। माइम प वस-रत, अन्धनि "कसलस्सवेनं ॥२७॥ *कलसी-करम्मि अच्छदि, दसरा तिम्मि घिर-भूवं । परोक्तं मासं चिय, 'बुबुद-घणमूब-मांसपेसी य ।।६।।
पंच • पुलगा-अंगोषंगाई 'चम्म-रोम-महा-क्या फंवनमम-मासे, गबमे क्समे 4 निमाम
॥६२६।।
१. व. ब. क. ज. प. उ. बिहेवणं. २.... - मेनिस, ब... गन्धिम्।। .क. ज. प. परिमाज प. उ. परिणदाज। ४. व. कसमहरा । ५. प. ब... र. मा. 3, मासुसे। ५.प.,
क्ष । ७.६, ३. क. न. प. ३. सकामो। .. २, य. मएमरोमात्र, ....पणमरोगा ।
प