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________________ १७८ ] निलोयपष्णती [ गापा ६२०-६२३ अर्थ :- नरकोंमें पचनेवाले नारकियोंको क्षणमात्र भी सुख नहीं है, वे सदेव दारुण दुःखों का अनुभव करते रहते हैं ।। ६९६ ।। । जं कुदि विषय- लुडो', पावं तस्सोवयम्म निरए तिब्बाओ धेयणाओं, पार्वतो विसबदि विसो ।।६२० ॥ अर्थ :- विषयोंमें लुब्ध होकर जीव जो कुछ पाप करता है उसका उदय आने पर नरकोंमें तीव्र वेदनाओं को पाकर विषण्ण ( दुःखी ) हो विलाप करता है ।।६२० ॥ शार्महविगमेत्तं दित-, असार । बिसहति घोर निरए, ताम समो मथि निम्बुद्धी ॥६२१ ।। अर्थ :- जो जीव क्षणमात्र रहनेवाले विषय सुखके निमित्त असंख्यातकाल तक घोर नरकोंमें दुःख सहन करते हैं उनके सदृश निर्बुद्धि और कोई नहीं है ।।६२१ ।। "ग्रंथो हि कूपे, बहिरो न सुगेदि साधु-उदबेसं । गिरए जं पडद से चनं ।। ६२२॥ सुमंत अर्थ :- यदि अन्धा कुएं में गिरता है और बहरा सदुपदेश नहीं सुनता तो कोई आश्चयं नहीं किन्तु जो देखता एवं सुनता हुआ नरकमें पड़ता है, यह आचर्य है ।। ६२२ ॥ तियंचगतिके दुःख भोत्तून णिमिसमेतं, विसय-मुहं जिसम-दुक्ख बहुलाह । तिरय गवोए पावा, भेट्ठति अनंत-कालाई ।।६२३॥ अर्थ :- पाणी जीव क्षणमात्र विषय सुखको भोगकर विषम एवं प्रचुर दुःखोंको भोगते हुए अनन्तकाल तक तियंचगतिमें रहते हैं ।। ६२३ ।। १. . . क. उ. मुढा, ज. व नढा । २. क्र. च. तिब्बाउ 1 ३. पत्तो ४. पै.ब. प्रेष्ठा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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