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निलोयपष्णती
[ गापा ६२०-६२३
अर्थ :- नरकोंमें पचनेवाले नारकियोंको क्षणमात्र भी सुख नहीं है, वे सदेव दारुण दुःखों का अनुभव करते रहते हैं ।। ६९६ ।।
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जं कुदि विषय- लुडो', पावं तस्सोवयम्म निरए तिब्बाओ धेयणाओं, पार्वतो विसबदि विसो ।।६२० ॥
अर्थ :- विषयोंमें लुब्ध होकर जीव जो कुछ पाप करता है उसका उदय आने पर नरकोंमें तीव्र वेदनाओं को पाकर विषण्ण ( दुःखी ) हो विलाप करता है ।।६२० ॥
शार्महविगमेत्तं दित-, असार
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बिसहति घोर निरए, ताम समो मथि निम्बुद्धी ॥६२१ ।।
अर्थ :- जो जीव क्षणमात्र रहनेवाले विषय सुखके निमित्त असंख्यातकाल तक घोर नरकोंमें दुःख सहन करते हैं उनके सदृश निर्बुद्धि और कोई नहीं है ।।६२१ ।।
"ग्रंथो हि कूपे, बहिरो न सुगेदि साधु-उदबेसं । गिरए जं पडद से चनं ।। ६२२॥
सुमंत
अर्थ :- यदि अन्धा कुएं में गिरता है और बहरा सदुपदेश नहीं सुनता तो कोई आश्चयं नहीं किन्तु जो देखता एवं सुनता हुआ नरकमें पड़ता है, यह आचर्य है ।। ६२२ ॥
तियंचगतिके दुःख
भोत्तून णिमिसमेतं, विसय-मुहं जिसम-दुक्ख बहुलाह । तिरय गवोए पावा, भेट्ठति अनंत-कालाई ।।६२३॥
अर्थ :- पाणी जीव क्षणमात्र विषय सुखको भोगकर विषम एवं प्रचुर दुःखोंको भोगते हुए अनन्तकाल तक तियंचगतिमें रहते हैं ।। ६२३ ।।
१. . . क. उ. मुढा, ज. व नढा । २. क्र. च. तिब्बाउ 1 ३. पत्तो ४. पै.ब. प्रेष्ठा ।