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________________ चत्वो महाहियारों तम्मच - उबएसावो, बालय बहनारिंग मेक्लिहून पुढं । तक्काले भाउ विहीना विलीयंति || ४७१ ॥ भोग - णरा गाया : ४७१–४७५ ] - प्रयं :- इस मनुके उपदेशसे स्पष्ट रूपसे अपने बालकोंके भूल देखकर भोगभूमिज ( युगल) तत्काल ही आपसे रहित होकर विलीन हो जाते थे ॥ ४७१।। यशस्वी मनुका निरूपण - अदुमए नाक गये, असोदि कोडीहि भजिव-पहसम्म । जसस्सिलामो मभू बनो ।।४७२ ।। योनीणे उप्पज्जदि, - । ५०००००००० | पाडेक श्री सुसि म :- आठवें कुलकरके स्वर्ग-गमन पश्चात् अस्सी करोड़से भाजित पत्यके आतीत होने पर यशस्वी नामकं नवम मनु उत्पन्न हुआ ||४७२ ॥ - - पासाधिय इस्तय कोदंड पमान देह हो । कंचण - वण्ण सरोरो, सय कोडी - भजिद पलाऊ ॥१४७३ ॥ - · १. ब. क.ज. प. उ. परिवाक । - 1 · | दं ६४० प १००००००००० | अर्थ :- वह स्वर्ण सदृश वर्ग वाले शरीरसे युक्त, छह सौ पचास धनुष कंवा और सो करोड़से भाजित पल्पोपम प्रमाण आयु वाला था ।।४७३ ।। णामेन कंबाला, हवेदि देबी इमस्स तबकाले । नामकरमुच्छवट्ट', उपदेस देवि जुगला ||४७४ ॥ [ १३७ अर्थ :- इसके कान्तमाला नामकी देवी यी । यह उस समय युगलोंको अपनी सन्तानके नामकरण - उसके लिए उपदेश देता है ।।४७४ ।। लखनउबदेसं णामाणि कुर्यति ते बि बालागं विसिय पोर्ण कालं, 'पक्खीगाऊ दिलीति ॥ ४७५॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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