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________________ पाथा : ४६३-४६६] चउत्यो महायिारी [ १३५ प्र:-इस कुलकरके समयमै कस्पयन अत्यन्त बिरल और अल्पफल एवं अल्प रस वाले हो जाते हैं, इसलिए मोमभूमिज मनुष्यों के शंच इनके विषय में नित्य ही कलह उत्पन्न होने लगता है ॥४६२।। 'सध्यपकलह - णिवारण -हेदूबो ताण कमइ सीमाओ । सर • गुलाबी बिह, तेण य सीमंघरो' भनियो ॥४६३॥ :-बह कुलकर कलह दूर करनेके निमित्त वृक्षा नया पोधों ( या फलोंके गुष्यों ) भादिको पिल्ल रूप मानकर सोमा नियत करना है पन ; वह सोमन्धर कहा गया है ।।४६३।। विमलयाहन कुमक गका निरूपणतम्मनु सग - गवं, असीदि लक्खावहरिव-पल्लम्मि । गोलीले उप्पानो, सत्तमओ "विमलवाहणो ति मणू ।।४६४।। Cocong' w:-सोमन्थर मनुके स्वयं चले जानेपर अस्सी लाखस भाजित पत्य प्रमाण काल वाद विमसवाहन नामक सातमा मनु उत्पन्न हुमा ।।४६४।। सह-सव-चायतुंगो, इगि-कोडी-जिर-पास-परमाक । कंचन - सरिच्छ - बन्नो, सुमरी - गामा महादेबी ॥४६॥ दंड ७०० 141.......। पर्व :-यह मनु सातसौ धनुष-प्रमाण ऊँपा, एक करोड़से भाजित पल्पप्रमाण आयुका धारक और स्वर्ण सहशा मर्गवाला था। इसके सुमति नामको महादेवी थी ।।४६५।। तरकाले भोग - णरा, गमणागमोहि पीदिरा संता । मारोहति करिव · बहुरि तम्सोयोस ।।४६६।। ३. प.ब. प.म... विमममाण । १ .ज, य, . साकसह। २. क. र, सोमकर। ४. ...., म. सत्ता। ५. ६.क.अ. प. उ. तस्मोवरण।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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