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________________ ર૪ तिमोयपास :- आचार्य श्री सुटी Ris गामा ४५१-४६२ वर्ष - कल्पवृक्षों में लुग्ध हुए वे युगल परस्पर विवाद करने लगे थे। तब सीमा निर्धारित 1 करके सोमकुर द्वारा उन सबका पारस्परिक संघर्ष रोका गया ||४५० ॥ उपर्युक्त पांच कुलकरोंको दण्ड व्यमस्मा सिगलं कुर्मति तानं परिसुति पहुवी फुलंकरा पंच सिक्ला - कम्भ - णिमितं, दंड कुवंति "हाकारं ॥ ४५६ ॥ अर्थ :- प्रतियुति आदि पाँच कुलकर उन ( मोगभूमिजों ) को शिक्षा देते हैं और इस शिक्षण कार्यके निमित्त 'हा' इस प्रकारका दण्ड ( विधान ) करते हैं ||४५६ ॥ सीमन्धर नामक कुकरका निरूपण लम्ममुळे तिमिषगये, ग्रह- समसामहिय-पल्ल-परिते । श्रीमंबरो सि छडो उम्पन्नधि कुलकरी पुरिसो ॥ ४६० ॥ :- इस (सीमकुर ) कुलकर के स्वगं चले जानेपर पाठ साससं भावित पल्म प्रमा काल बाद सीमन्धर नामक झुठा कुलकर पुरुष उत्पन्न होता है ।।४६० ॥ १ ८ स तस्सुको 'गंडा, पचामहिय सत्त - - लय मेशा। बस-नक्स भजिव पर्ल्स, भाऊ देवी जसोहरा नाम ||४६१|| · - - | दंड ७२५ | १०० :- उसके शरीरका उत्संघ सातसौ पच्चीस धनुष था और मायु दस सबसे भावित पल्प प्रमाण थी। इसके 'यशोधरा' नामकी देवी वो ||४६११ तक्काले कम्पमा प्रविविरला अन्य-फल- एसा होति । भोग जरानं ते कसही उप्परनवे निच्वं ॥। ४६२ ।। . . . . कारं । २. . . . . कुलकरा १.म.दंडो
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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