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तिमोयपास
:- आचार्य श्री सुटी
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गामा ४५१-४६२
वर्ष - कल्पवृक्षों में लुग्ध हुए वे युगल परस्पर विवाद करने लगे थे। तब सीमा निर्धारित
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करके सोमकुर द्वारा उन सबका पारस्परिक संघर्ष रोका गया ||४५० ॥
उपर्युक्त पांच कुलकरोंको दण्ड व्यमस्मा
सिगलं कुर्मति तानं परिसुति पहुवी फुलंकरा पंच सिक्ला - कम्भ - णिमितं, दंड कुवंति "हाकारं ॥ ४५६ ॥
अर्थ :- प्रतियुति आदि पाँच कुलकर उन ( मोगभूमिजों ) को शिक्षा देते हैं और इस शिक्षण कार्यके निमित्त 'हा' इस प्रकारका दण्ड ( विधान ) करते हैं ||४५६ ॥
सीमन्धर नामक कुकरका निरूपण
लम्ममुळे तिमिषगये, ग्रह- समसामहिय-पल्ल-परिते । श्रीमंबरो सि छडो उम्पन्नधि कुलकरी पुरिसो ॥ ४६० ॥
:- इस (सीमकुर ) कुलकर के स्वगं चले जानेपर पाठ साससं भावित पल्म प्रमा काल बाद सीमन्धर नामक झुठा कुलकर पुरुष उत्पन्न होता है ।।४६० ॥
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८ स
तस्सुको 'गंडा, पचामहिय सत्त
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लय मेशा। बस-नक्स भजिव पर्ल्स, भाऊ देवी जसोहरा नाम ||४६१||
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| दंड ७२५ | १००
:- उसके शरीरका उत्संघ सातसौ पच्चीस धनुष था और मायु दस सबसे भावित पल्प प्रमाण थी। इसके 'यशोधरा' नामकी देवी वो ||४६११
तक्काले कम्पमा प्रविविरला अन्य-फल- एसा होति । भोग जरानं ते कसही उप्परनवे निच्वं ॥। ४६२ ।।
. . . . कारं । २. . . . . कुलकरा १.म.दंडो