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गाथा : ४५५-४५० ]
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पउत्यो महाहियारो खोमकर नामक मनुका मिल्पन --
तम्मनवे गाक - गवे, सौबी-सहस्सामहरिव-पल्सम्मि । सदिवे' पंचममो, गम्मरि सोमंकरो पि मगू ॥४५५।।
बर:-इस कुसकरके स्वर्ग से जानेपर अस्सी हजारसे मालित पल्य प्रमाण झालके मन्तरसे पांचवें सीमपुर मनुका जन्म हुमा ।।४५५||
तस्सन्छेहो पंडा', पन्नासम्महिप - सत्त • सम - मेता । लक्वेग भणिय - पल्लं, आऊ वो सुबज्य-निहो ॥६॥
। ६ ७५० । १.१...।
प्रथ:-उसके शरीरका उत्सेष सातसौ पचास (७५० ) धनुग, भायु एक नाबसे माजित पस्म प्रमाण और वर्ष स्वर्ण सदृश्य पा ॥४५६।।
यौ तस्स पसिवा, णामेन मनोहरि ति तपकाले । कप्पतरू अप्प - फला, 'दिलोहो होदि मनुवा II
म: उसकी देवी 'मनोहरी' नामसे प्रसिद थी । इस समय कल्पवृक्ष अल्प फल देने लगे ये और मनुष्योंमें मोम मन पसा था ॥४५७||
सुरतइ - सुखा बुगला, अनोज गति संवा । सोमंकरेग सोम, कारण निवारिवा सो ४५८||
१.स. १. क. उ. पंचरिदे पंचायी, प. ते संतरिक्ष रमवी। २. .. .. प. उ. दंगे। .... प. प. पारिमोहारि। .... तया ।