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________________ यो महाहियारो सन्मति नामक मनुका निरूपण परिसूद मरमा तवा, पल्लस्सालोदिमंस - बिन्छे' । उपजदि बिडिय मणू. सम्मति नामी सुब-गिहो ।।४३७ ।। 19201 अर्थ :- प्रतिद्युति कुलकरकी मृत्युके पश्चात्पत्य अस्सीचे भागके व्यतीत हो जाने पर स्वर्ण सदृश कान्ति वाला सन्मति नामक द्वितीय मनु उत्पन्न होता है ।।४३७।। মাা: ४३७-४४१ ] एक सहस्वं लि.समस्तहिवं इंाणि तस्स पलिदोबम- सद- भागो, आक देवी जसस्तदी - १०.भी राशि की :--उसके शरीरकी ऊंचाई एक हजार तीनसो धनुष प्रमाण और मायु पत्योपमके सोधें भाग प्रमाण भी उसको देवीका नाम यशस्वती या १४३८ तक्काले तैयंगा, गठ्ठे पभावा हवंति से सब्बे । ततो सूरस्यमये, बठून तमाइ तारालि ॥४३६॥ उम्पावा अघोरा अदि पुरुषा वियंसिदए । इय भोगज-गर- सिरिया, विर-भय-भंगला जावा ||४४० ॥ • हो । णामो || ४३८ ॥ अर्थ :---तस समय रोजाङ्ग जातिके सब कल्पवृक्ष प्रभाहीन हो जाते हैं, इसीलिए सूर्यके अस्तङ्गत होनेपर धधकार और तारा पंक्तियों को देखकर 'ये अयन्त भयानक अट पूर्व उत्पात प्रकट हुए यह मानकर वे भोग भूमिज मनुष्य-तियंञ्च भयसे अत्यन्त व्याकुल हुए : १४३६-४४०|| सम्मविसामो कुलकर- पुरिसो "भीवाण वेहि श्रनय-गिरं । तैयंगा कालवसा, णिम्ल पणट्ट १. जय विठो । २. ब. य. सारा ४. ५. जयमेतमा ब. क. ण य उ पला । वेदि । - - [ १२६ किरोधा ।।४४१ ।। । ३. . . . . . . विझवि । ५. द... . . भेदा देवि नमेवाल
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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