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________________ १२५ ] तिलोयणाती तक्कारण एन्हि, ससहर- रविमंडलानि गयमम्मि । पानि स्थिम्हं एवाण बिसाए भय हे ॥४३३॥ - वर्ष :-तब प्रतिश्रुति नामक कुलकर पुरुषने उनको निर्भय करने वाली वाणीसे बतलाया कि कालवश अब तेजांग जातिके कल्पवृक्षोंके किरण समुह मन्द पड़ गये हैं, इस कारण इस समय आकाश में उन्द्र और सूर्यके मण्डल प्रगट हुए हैं। इनकी प्रोरसे तुम लोगोंको भयका कोई कारण नहीं है ।।४३२- ४३३ । पिच्वं चि एवानं अवयस्थमज्ञाणि होति श्रायासे । पडिहद किरमाण * पुढं तेयंगकुमार ते हि ॥ ४३४ ॥ र - अ :- प्राकाशमें यद्यपि इनका उदय नित्य हो होता रहा जाति के कल्पवृक्षोंके तेजसे इनकी किरणोंके प्रतिहत होनेसे ( अब तक) वे प्रगट नहीं दिखते वे ।।४३४ ।। - जंबूदरी कुवंति पवाहिणं तरणि - चंदा । रति विषाण विभाग, "कुणमाणा किरण सत्तीए ॥ ४३५॥ मेह 1 ale मेरुपसकी प्रदक्षिणा किया करते हैं ।। ४३५ ।। [ गाथा ४३३-४३६ अर्थ :- ये सूर्य एवं चन्द्रमा अपनी किराशक्ति से दिन-रातरूप विभाग करते हुए जम्मू सोकण तस्स बपणं, अवंति चलन - कमले 1 · संजाबा जिग्भया तदा सच्वे । - जुनंति बद्धविह पाहि ॥४३६॥ अर्थ :- इस प्रकार उन ( प्रतिश्रुति) के वचन सुनकर ये सब नर-नारी निर्भय होकर बहुत प्रकारसे उनके चरणकमलोंको पूजा और स्तुति करते हैं ||४३६ ॥ 1. t. 1. 5. X. T. v. afgi २. ब. उ. भो, क. ४.म.अ.यच. किरणाए । ५. . . ट. कुलमा । प. अमवी । १. प. प. क्र. ६८. कमी
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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