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________________ गाषा : ४१५-४Reat - HERE THERE [१२३ भोगभूमिषोंमें मागंसा आदिका निरूपणगुणजीरा पमती, पाणा सन्ना य मम्गना कमसो। उबजोगो कहिबब्बा, भोगक्षिती - संभवाम जह-योग' ।।४१५॥ प:--भोगभूमिज जीवोंके पपायोग्य गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मार्गणा और उपयोगका कपन क्रमशः करना चाहिए १४१५।। भोगवाणं अवरे, वो गुगठाणं विम्मि चउ - संखा । मिच्छाइट्टो सासरा - सम्मा मिस्साविरद - सम्मा ॥४१६।। मर्थ :-भोगभूमिज जीवोंके जघन्यसे अर्थात् अपर्याप्त अवस्था में मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं, तथा उत्कृयतासे अर्थात पर्याप्त अवस्था मिथ्याष्टि, सासादनमम्पकरण, मिश्र और मविरतसम्यग्दृष्टि ये चार गुणस्माम होते हैं ।।४१६।। ताग अपचल्लाणावरगोक्य - साहिब सय्य जीवानं । चिसयाणा - सुपाणं, सामायिह - राग - पउरा ॥४१७।। सविरदादि उरि, बस - गुगठाणाग - हेकु-मूदायो । जागो विसोहियाओ, मइया ग ताओ जायते ।।४१८॥ म :-अप्रत्याख्यानावरण-कषायोदय सहित दीर्घ रागवाले वे सभी जीव विषयोंके मानन्दये युक्त होते हैं। देपाविरतसे लेकर दसवें गुणस्थान पर्यन्सको कारण भूत उत्पन्न हुई विशुधि वहां किसी भी जोरके नहीं पाई जाती है ।।४१७-४१८।। और-समासा वोज्निय, निबत्तिय-पुष्णपक्षा-भेदेन । परमती छाभेया, तेत्तिम - मेत्ता मानती ॥१६॥ म :-इन जीवोंके नित्यपर्याप्त और पर्याप्तके भेदसे दो पीवसमास, छहों पर्याप्तियां और इसनी ही अपर्याप्सियां होती है ||४|| १.प. य. गोग।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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