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________________ १५४ ] पक्वते इबरल्स, मन बज्र कार्यक:- भाले श्री विि :- उनके पर्याप्त अवस्थामें पांचों इन्द्रियाँ, मन, वचन, काय, श्वासोच्छ्वास एवं आयु ये बस प्राण तथा इतर अर्थात् अपर्याप्त अवस्थामै मन, बचन और श्वासोच्छ्वास से रहित व सात प्राण होते हैं ।।४२० ॥ अ तिलोगणती 'मण वच काया, उल्सासाक हर्बति वस पाया । उस्सास परिहीना ॥४२०१ प. उ. पुलग - चउ-सम्मा शार-तिरिया, सबला तस काय ओोग-एक्करसं । चउ-मण-उ-वयणाई, 'श्रोल व कम्म इयं ॥४२१॥ पुरिसियो वेद-जुदा, सयल कसाह संजुना खिवं । खन्नान खुदा ताई, मंदि ओहाण सुव · · . · : - - · मदि सुद अागाई, विभंगचागं असंखदा सब्बे । - लि सभा य ताई, अगस्तु अचम्लूणि ओहि-यंस [ गाथा : ४२०-४२६ • - भोगपुच्ए' मिन्छे, सासण सम्मे असुह-लिए-लेस्तं । काऊ अष्ण सम्मे, मिन्छ चक्के सुह तियं पुष्णे ।।४२४ ।। · - भवाभव्या मुस्सम्मा उवसमिम खड़य सम्मता । तह वेदय सम्मतं, सासन मिल्ला यमिच्छाय १४४२५॥ मानें ॥४२२ ॥ - ॥४२३॥ और तियं -भोगभूमिज जीव आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह इन चार संज्ञाओं से मनुष्य सकल अर्थात् पंचेन्द्रिय जातिसे; त्रस कायसे चारों मन्दोयोग, चारों वचनयोग दो श्रदारिक ( सौदारिक, मौदारिक मिश्र ) तथा कार्मण इन व्यारह योगोसे पुरुषवेद और स्त्री गति · सनोजीमा होति बोधि य आहारिनो अनाहारा । उवजोगा होंति नियमे ।। ४२६ ॥ सायार - अजादारा, १. द. अणु २. व. ब. क. ज य उ. पज्जती । १. . . . उरात Y..E... ५. ६.सय उ. पुषे ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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