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तिलोयपण्णत्ती
[ गाया : ४१er प्रम :-उस कालमें स्त्री-पुरुषोंके पृष्टभागमें चौंसठ हड्डियां होती है, तथा नारियां अप्सराओं सहश और पुरुष देवों सदृश होते हैं ॥४०६।।
तरकाले से मणुषा, आमसक - पमानममिप - आहारं ।
भुति वितरिया, समबरसंग - संठाचा rton
RM :-उस काल में समचतुरस्रसंस्थानसे युक्त वे मनुष्य एक दिनके प्रत्तरसे अविन बरावर अमृतमय आहार ग्रहण करते हैं ।।४?ll
ससि संवावा, सयगोपरि चालयाण सुत्सा। णिय 'अंगुहय - लिहा तसा : विद्यापिठावचालित ARE AR ARTITAN
मर्च :- उस कालमें उत्पन्न हुए बालकों के शय्यापर सोते हुए अपना मंगूठा चूसनेमें सात दिन व्यतीत होते हैं ॥४१॥
बहसण-अस्थिर-गमगं, पिर-गमग-कला-गुण पत्तक ।
तरुणेशं सम्मत्त, गहनं जोगेण सत्त - विमं ॥४१२||
म :- पश्चात् उपवेशन, अस्थिरगमन, स्पिरगमन, सागुरणप्राप्ति, तारुण्य बोर सम्यक्त्व यहाएको योग्यतासे प्रत्येक प्रवस्थामें क्रमश: सात-सात दिन माते हैं ॥४१॥
एसिय - मेत्त - रिसेस, मोतू सेस-चन्गण-पपारा ।
कालम्मि सुसम - गामे, जे' भणिया एत्व वसव्वा ॥४१॥
म:--हसनी मात्र विशेषताको छोडकर मेष वर्णनके प्रकार जो सुचना नामक दूसरे कालमें कह माए हैं, वे ही यहां पर कहने चाहिए ।।४१३।।
भोगनिदोए ग होति छ, चोरारिम्पादि-विविह-बाधाओ।
प्रसि - बहुवि • च्छषकम्मा, सीवादप-बान-परिमानि ॥४॥
म :-भोगभूमिमें चोर एवं शत्रु आदि को विविध बाधाएँ, असि आदिक सह-कर्म तपा गीत, मासप, वात ( प्रचण्ड वायु ) एवं वर्षा नहीं होती Irry
१. ६. अमूहामहणे । २. ८. ब. क.अ. 4. दिगाभ। ३. १, ३. क. ज. प. . को गणियो ।