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________________ गाथा : ४०५ ४०१ ] प महाहियारो श्रवशेष कथन - एसिया मेस विसेसं मोलूनं सेस-वन्गयपारा । सुसमसुसमम्मि काले, जे भगदा' एच बम्बा ॥४०५॥२ श्री सुनिनिष्ट जी हा अर्थ :- उपर्युक्त इतनी मात्र विशेषताको छोड़कर शेष वर्णनके प्रकार जो सुषमसुषमा कान में कहे गये हैं, उन्हें यहाँ भी कहना चाहिए ।।४०५ ।। दूसरे कालका प्रमाण आदि कालम्मि सुसमणामे, लिम-कोडीकोसि उबहि-उबमम्मि । पढमावो होयंते, उच्हाऊ - बसद्धि t. सेवावी ।।४०६ ।। :-तीन कोटाकोड़ी सागरोपम प्रमाण सुषमा नामक कालमें पहिले से ही उस्सेप, यू, बस, ऋद्धि और तेज भादि उत्तरोतर हीन-हीन होते जाते हैं ।।४०६ ।। सुषमादुषमा कालका निरूपण उच्छे-वि-लोणे, पश्चिसेवि हु सुसमदुस्समो कालो । तस्स पमाणं सायर उचमाणं वोन्हि कोडिकोज अर्थ :- उत्घादिक क्षीण होने पर सुषमदुधमा काल प्रवेश करता है । उस कालका प्रमाण दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ||४०७॥ तबकालाविम्मि 'णराजुच्छे हो हो सहस्स एक्क पलिदोषमाऊ, पिबंगु सारिच्छ - २२४०७॥ · - [ १२१ । दं २००० । १ । पर्थ :---उस कालके प्रारम्भमें मनुष्योंकी ऊंचाई दो हजार (२०००) धनुष, आयु एक पल्य प्रमाण और वर्ण प्रियंगु फल सट्टा होता है ।१४०८ || भाषाणि । वण-धरा ॥४०८ ॥ चचसट्ठी पुट्टीए राग खारोग होंति अट्ठी वि I अच्छर सरिसा रामा, अमर समानो गरो होदि ४०६ ॥ प.उ. जो महादो | २.६. चारा हो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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