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तिलोयपण तो
'पुरुषम्म य लबमासे, सु-सयणे सोविऊण जुगलाई ।
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भुगलेल : निक्कल
:- भोगभूमिज मनुष्य और तियंचोंकी नो मास श्रायु अवशेष रहने पर ही उनके गर्म रहता है, शेष कालमें किसीके भी गर्म नहीं रहता। नव-मास पूर्ण हो जाने पर युगल ( नर-नारी ) भू-शया पर सोकर गर्भसे युगलके निकलने पर तत्काल ही मरण को प्राप्त हो जाते हैं ।। ३७६- ३८०१
चिक्केण मरवि पुरिसो, जिभारंभेण कामिनी दोन्हं । सारव - मेघ जब तप्पू, आमूलायो बिसीएहि ॥३८१॥
अर्थ :- पुरुष कसे और स्त्री जंभाई थानेसे मृत्युको प्राप्त होते हैं। दोनोंके शरीर शरत्कालीन मेघ के समान आमूल विलीन हो जाते हैं ||३५१||
भोगभूमित्रों की गति -
[ गाया : ३८०-३८४
भावन बेंतर जोइस- सुरेस जयंति मिच्छु-भाव-जुदा ।
सोहम्म दुगे भोगज गर तिरिया सम्म भाष-जुदा ॥३६२॥
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सर्वकाल ।।३८०॥
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१. १. ब. रु. ज. प. उ. पुण्य मि म. च. सारमेय ४. . . . दमण
अर्थ :- ( मृत्यु दाद ) भोगभूमिज मिथ्यादृडि मनुष्य-तियंच भवनवासी, व्यन्सर और ज्योतिषी देवोंमें तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य-तियं सौचमं युगल पर्यन्त उत्पत्र होते हैं ।। ३८२ ॥
जन्म पश्चात् भोगभूमिज जीवों का वृद्धिक्रम -
जावान भोगनूवे, सपनोवरि बालयाण सुत्तानं ।
गिय अंगुरुय लिहणे, गच्छते तिन्मि विवसाणि ॥ ३६३॥ *इस रणन्प्ररिथर-गमणं, पिर-गमण-कला-गुणेण पक्कं । सम्मत गहण - पाउग्ग तिदिनाई ।।३८४ ।।
" तारन्गेणं
अर्थ :- भोप भूमिमें उत्पन्न हुए बालकोंके शय्यापर सोते हुए अपना अंगूठा घुसने में तीन दिन व्यतीत होते हैं, पचात् उपवेशन (बैठने ), प्रस्थिर-गमन, स्थिर-गमन, कला गुणोंकी प्राप्ति,
२. ६. प. अ. य. क्किले सम्महि । अ य ता पुखं 1
३. ब. ब. क. ज.
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