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गाथा ४/१७९३ :
यह है
शंकु के समन्निक की पारेखा का मान निकालने हेतु जिस सूत्र का उपयोग हुआ है वह
1.
पादयं सूत्रा SXID, And h
H
भूमि D, मुखd ऊँचाई H दी गयी है ।
गावा ४/१७६७ :
समसम्म चतुर्भुज को आकृति त्रिभुज संक्षेत्र के सममिक के मनीक रूप में होती है। उसीप्रकार शंकु के समच्छन्नक को उदग्रममतल द्वारा केन्द्रीय अक्ष में से होता हुआ काटा जाये तो छेद से प्राप्त प्राकृति भी समलम्ब चतुर्भुज होती है ।
यदि जूलिका के शिखर से योजन नीचे विष्कम्भ प्राप्त करना हो तो सूत्र यह है :
xev+ [ D=d]+b
H
x=D − { { H-8 ) + ( D=
D = c + h ૪
गाया ४/२०२५ :
इस गांव में जोवा C और बाम दिया जाने पर विष्कम्भ D निकालने का सूत्र दिया गया है
}]
B
Eng
गरबा ४/२३७४ :
इस गाथा में मनुष के आकार के क्षेत्र का सूक्ष्म क्षेत्रफल निकालने का सूत्र दिया हैधनुषाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल = / cix tom he 7 cix १०= 45 / १०
W
इससूत्र का उल्लेख महावीराचायें ने "गणित सार संग्रह" में किया है। गाचा ४/२५२५ :
इस गाथा से प्रतीत होता है कि अन्धकार को उनके विष्कम्भों के वर्ग अनुपात के तुल्य होता है। क्षेत्रफल A हो और बड़े द्वितीय वृत्त का विष्कम्भ D-D
D
( A
ज्ञात था कि दो बसों के क्षेत्रफलों का अनुपात मामलो छोटे प्रथम वृत्त का विष्कम्भ D तथा तथा क्षेत्रफल . हो तो
) अथवा
देखिये बम्बूद्रोपनि ४३४
देखिये "मयसार "सोनार, १९६३ ० ०/७०३ । बम्बूद्वीपप्रशति १०७
में समानुपात नियम २/११-२० में दिये हैं।