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________________ गापा ४/२७६१ : इस गाथा में वृत्त का क्षेत्रफल निकालने के लिए सूत्र हैवृत्त या समान गोल का क्षेत्रफल= √(D) *1 *}** ४ जिसे आज हम के रूप में उपयोग में लाते हैं। यहाँ D विष्कम्भ है । गापा ४/२७६३ : x १० - - ( वलयाकृति वृत्त या वलय के प्राकार की आकृति का क्षेत्रफल निकालने का सूत्र - मानलो प्रथम वृत का विस्तार D, और दूसरे का D हो तो वलयाकार क्षेत्र का क्षेत्रफल - _√ [२] » − { DVex (B हाल INTO [D] जिसे ( ) लिखते हैं। गावा ४/२९२६ : जग में सुमंगुल के प्रथम भोर तृतीय वर्गमूल का भाग देने पर जो लब्ध माये उसमें से १ कम करने पर सामान्य मनुष्य राशि का प्रमाण जगणी (सूच्यंगुल) पट -१ पाता है। यह महत्वपूर्ण पोसी है, क्योंकि इसमें राशि सिद्धान्त का आधार निहित है । विशेष टिप्पण : तिलोणी चतुर्थ अधिकार में भरत क्षेत्र, हिमवान् पर्वत, इंमवत क्षेत्र महामान पर्वत, हरिवर्ष क्षेत्र, निवध क्षेत्र और विदेह क्षेत्र के सम्बन्ध में विभिन्न माप दिये गये हैं। इनके क्षेत्रफल सम्बन्धी मापों में दिये हुए सूत्र के अनुसार भरत क्षेत्र, निवन क्षेत्र एवं विदेह क्षेत्र का क्षेत्रफल गाथा २३७५, २३७६ २३७७ में दिये गये प्रमाणों के समान प्राप्त हो जाता है। किन्तु हिमवान् पर्वत, हैमवत क्षेत्र, महा हिमवान् पर्वत एवं हरिवर्ष क्षेत्र के क्षेत्रफल तिलोथप तो ( भाग १, १९४३ में नहीं दिये गये हैं। यहाँ प्रकृत में सूक्ष्म क्षेत्रफल से अभिप्राय है । तथापि पूज्य विशुद्धमती प्रायिका माताजी के प्रयासों से हिमवान् पर्वत, ईमवत क्षेत्र, महाहिमवान् पर्वत (त्रुटिपूर्ण) एवं इरिवर्ष क्षेत्र के सूक्ष्म क्षेत्रफल उल्सिलित करने वाली गाथाएं कन्नड़ प्रति से प्राप्त हुई हैं। इनमें से कथित सूत्रानुसार हरिवर्ष निवश एवं विदेह के क्षेत्रफलों के प्रमाण गणनानुसार पूर्णत: श्रचना लगभग मिल जाते हैं किन्तु हम पर्वत एवं हैमवत क्षेत्र के क्षेत्रफलों के मान नहीं मिल सके हैं।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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