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पाषा : ३३६-३४५ ] घउत्यो महाहियारो
[१०७ तस्सि काले छ विचय', भाव-सहस्साणि' देह-उस्सेहो ।
तिणि पलियोवमाई...माणि गराण भारोणं ॥३३६ETA
प:-इस कालमें पुरुष और स्त्रियों के शरीर को ऊंचाई छह-हजार घनुप एवं प्रायु तोन पल्य प्रमाण होती है ।।३३६।।
पुढोए होति अट्ठी, आपणा समहिया य दोष्णि सया ।
सुसमसुसमम्मि काले, गराण भारीण परोक्कं ॥३४०॥
म:-सुपमासुषमा कालमें पुरुष और स्त्रियोंमेंसे प्रत्येकके पृष्ठ भागमें दो सौ छप्पन हड्डियाँ होती है ।।३४०॥
भिग्णिव-नील-फेसा, गिरवम-सामन्य-जब-परिपुष्पा ।
सुइ - सायर - मझगया, गोलुप्पल-सुरहि-गिस्सामा ॥३४१।।
प:-( इस कालमें मनुष्य ) भिन्न इन्टनीलमणि अति खणित इन्द्रनीलमणि असे सोचसे गहरी नीली (काली) होती है उसके सदृश गहरे काले केशवाने, अनुपम लावण्यरूपसे परिपूर्ण सुखसागर में निमग्न और नीलकमल सहा मुगन्धित निश्वास से युक्त होते हैं ।।३४।।
सम्भोगमूमि-जावा, गण-गाग-सहस्स-सरिस-बल-जसा । आरत - पाणि • पादा, वर्षपय - कुसम • गंधदसा ।।३४२॥ महब - प्रज्जव - जुस्सा, मंदकसाया सुसील - संपण्णा । प्राविम • संहणण - जवा, समथरस्संग - संठागा ॥३४३।।
बाल-रवी सम-तेया, कबलाहारा वि विगव-गोहारा । ते हुगल - धम्म - सुशा, परिवारा गपि तक्काले ॥३४४॥ गाम-जयरावि सध्वं, ए होते होंति दिव्य-कल्पतरू । पिय • गिय - मग - संकप्पिा-बस्थगि बति बुगलाखं ॥३४॥
१. द.म.ज.प. उ. अमिह । २. ६. प. महम्मा, प. महसलो।