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तिलोपाती
[ गाथा ३४६-३४१
अर्थ :- उस भोगभूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य नौ हजार हाथियों के बलके सदृश गलसे युक्त, किंचित् साल हाथ-पैर वाले नव- चम्पकके फूलों की सुगन्धसे व्याप्त मार्दव एवं प्रार्जव ( गुणों) से सयुक्त, मन्दकषायी, सुशील (गुण से) सम्पूर्ण आदि (षष्ववृष मनाराच संहनन से युक्त, समचतुरस्रशरीर-संस्थानवाले, उदित होते हुए सूर्य सदृश तेजस्वी, कवलाहार करते हुए भी मल-मूत्रसे रहित और युगलधमं युक्त होते हैं। इस कालमें नर-नारोके अतिरिक्त अन्य परिवार नहीं होता। ग्राम एवं नगरादि नहीं होते, पर दिये वृद्ध होते हा जो युगलों को अपनी-अपनी मन इच्छित ( संकल्पित ) वस्तुएँ दिया करते हैं ।।३४२-३४५ / २
दस प्रकारके कल्पवृक्ष
पानंग' तुरियंगा, भूषण वस्त्वंग भोषनंगा
य ।
श्रालय दोषिय भायण मामा-सेजंग-आदि-रूप्पतरू ।। ३४६ ।।
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अर्थ :- ( भोगभूमि में ) पानाङ्ग, सूर्याङ्ग, भूषणाङ्गवस्त्राङ्ग, भोजनाङ्ग मलयाङ्ग, दीपाङ्ग, भाजनाङ्ग, माला और तेजाज आदि कल्पवृक्ष होते हैं ।। ३४६||
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पाणं महुर सुसादं छ- रसेहि जुवं पसत्य बत्तीस मे जुरां,
महसीवं । पानंगा देति तुद्धि पुट्टियां १२३४७॥
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अर्थ :- ( इनमें से ) पानाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष (भोगभूमिजोंको) मधुर, सुस्वादु छद्द रसोंसे युक्त, प्रशस्त, प्रतिपीतल तथा तुष्टि और पुष्टिकारक बत्तीस प्रकारके पेय ( दृष्य ) दिया करते है ।। ३४७।।
तूरंगा वर वीणा, वडपडह मुइंग झल्लरी - संद
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कुंदुभि भंभा मेरी काल-पमुहाइ देति 'वजाई ॥ ३४८ ॥
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अ :- तूर्याङ्ग जातिके कल्प वृक्ष उत्तम धोरणा, पटु पदह, मृदङ्ग, झालर, शंख, दुन्दुभि, मम्मा, भेरी और काल इत्यादि भिन्न-भिन्न प्रकारके बाजे ( वादित्र ) देते हैं ।। ३४८ || तर विसगंगा, कंकण कठिसुलहार केयूरा 1
अंजोर कडमडल तिरोड मजडादियं देति ।। ३४६ ॥
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:- भूषरगाङ्ग जातिके कल्पवृक्ष कंकण, कटिसूत्र, हार, केयूर, मञ्जीर, कटक, कुण्डल, किरोट और मुकुट इत्यादि आभूषण प्रदान करते हैं ।। ३४६ ।।
१. क. ज. य, उ. पायगा । २. ब. प ३. . . . . . . रंगा