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गापा : १२६-३३३ ] पउलो महाहियारी
[ १०५ पोक्सारनी पाहुबीन, घउ-तर-सूमीसु रपण-सोबाणा' । लेवर - पासावा', सयभासण • निवह - परिपुन्जा ३२६॥
प्रध:-( इन ) पुष्करिणी आदिकको चारों तट-भूमियों में रत्नोंको सोलियां होनी हैं। उनमें सस्या एवं प्रासनोंके समूहोंसे परिपूर्ण उत्तम भवन है ।।३२६।।
गिस्सेस-वाहि-गासम-प्रमिदोषम-विमल-सलिल-परिपुण्मा ।
ऐहति विधिमाओ, बल - कौडण - विष्व - बन्द - जुरा ॥३३॥
म :-सम्पूर्ण व्याधियोंको नष्ट करनेवाले अमृतोपम निर्मम जतसे परिपूर्ण और जनकोड़ाके निमिततूत दिव्य म्पोंसे संयुक्त दोषिकाएं ( वापिकाएं) शोभायमान होती हैं ॥३३०।।
बहमुतयाण भवना, सपणासोदिया अपसवा RTREETE 2
विविदित "भासते, णिरूपमं भोगमूमौए ।।३३१॥ वर्ष :-भोगभूमिमें ( भोगभूमियोंके ) अत्यन्त रमणीय भवन और उत्तम प्रासाद अनेक प्रकारको शय्याओं एवं अनुएम आसनोसे सुन्दर प्रतिभासित होते हैं ।।३३१॥
धरनिधरा उसगा', कंधण-चर-रयण-नियर-परिणामा ।
गाणाविह - कप्पखुम' - संपुगा विधिमादि • बुवा ।।३३२॥
प्रबं:-( वहां पर ) स्वणं एवं उत्तम रत्न समूहोंके परिणाम रूप, नाना प्रकारके फल्पवृक्षोंसे परिपूर्ण तथा दीधिकादिक (सरोवरों से संयुक्त उन्नात पर्वत हैं ।।३३२।।
परगो वि पंचवमा, तन-मन-यमान नरगं कुमाह ।
वग्निावशील-मरगय-मुत्ताहल-"पजमरायफलिह-युवा ॥३३॥ म:-पंचवर्ण वाली और होरा, इन्द्रनील, मरकत, मुक्ताफल, पपराग तथा स्फटिक मणिसे संयुक्त वहां की पृथिवी भो तन, मन, एवं नयनों को मानन्द देनी है ।।३३३।।
...क. स. सोबारशो। २...ब. क. पा. ३.पर परमाग, म.पर पासादो। ३. ...क. २. ३. मचिरावम। ४. स... भामंती,क.म.प.र. पभासती । ..... उत्तथा। ....... प. उ. अप्पमा । ७. प.ब.क.अ. उ. परमपनि।