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: २०७-२६०
६२ ] तिलोपपत्तो
गामा : २८५-२६० व्यवहारकालके भेद एवं उनका स्वरूप-- समयावलि - उस्सासा, पाणा योषा य भाषिया 'मेरा ।
गबहार - कास - गामा, णिहिट्ठा बोयराएहि ॥२७॥
भ:-समय, आवलि, उच्छ्वास भाग एवं स्तोक इत्यादिक वीतराग भगवान द्वारा व्यवहार कामके नामसे निर्विष्ट किये गये हैं ।।२८७।।
परमाणुस्स णिय-टिव-गयण-परेससदिक्कमल-मेतो ।
जो कालो अविभागो, होवि पुर समय - भामो सो ॥२८॥
प:-पुदगल-परमाणुका निकटमें स्थित भाकाश-प्रदेशाके अतिक्रमण-प्रमाण चो अविभागी काल है, मही 'समय' नामसे प्रसिद्ध है ॥२८॥
होति हु मसंख-सममा, आवलि-णामो' तहेव उससासो । संखेमालि-नियहो, सो बिम' पानो शिविसादो ॥२८॥
प्रबं:-असंश्यान समयोंको शवली और संख्यात जावलियों के समूहरूप उच्छ्वास होता है। यही उम्छ्वास काल 'प्राण' नामसे प्रसिद्ध है ।।३८६।।
सन्तुस्सासो थोषो, सत्तस्योगा* समित्ति गारयो। सत्तसरि • दलिय - समा', गालो में णालिया मुहसं च ॥२toil
प्रबं:-सात उच्छ्वासोंका एक स्तोक एवं सात स्तोकौंका एक सव जानना चाहिए। सतत्तरके आधे (२८१) लकोंकी एक नामी और दो नालियोंका एक मुहूर्त होता है ।।२१०।।
७ उच्छ् । स्तोक । ७ स्तोक-१ लव । ३८ लव- नाली । २ नाली= १ मुहूर्त ।
१. द... क.अ. य.च. दो। २... विक्कमेती , क.क. प. उ. दिपकोणत्तो। ३.अ.म. रगाहो। ४...ब.क. स. उ. पिय-दरणी ति, य. बिपरणकोति। ५. इ. सत्तरोबायपावसिसि कहतत्वों मानिति, के. सतलोवोत्तमी ति, उ. मत्तत्वोगावमतिता बमो। अ.. ससरपौवा बोसि हादया। ६...ब.क. ज. स. उ, भया। ५. इ.स.क.न.:
.प.प. I: