________________
गाथा : २६१-२६५ }
रउत्थो महाहियारो समऊमेक • मुहत्तं, भिण्णमुहूतं मुहत्तया सीसं ।
दिवसो पगारसेहि, शिवसेहिं एक्क - पालो' ॥२६॥
पथ :-समय कम एक मुहूतंको भिन्नमुहूतं कहते हैं । तीस मुहूर्तका एक दिन और पन्द्रह दिनोंका एक पक्ष होता है ।।२६१॥
यो पाहि मासो, मास - बुगेनं उडू उत्तिवयं ।
अपर्ण अयण - युगेनं, परितो पंच - वल्रेहि जुर्ग १२६२॥
प:-दो पक्षोंका एक माम, दो मामोंकी एक ऋतु, तीन ऋतुओंका एक प्रयन, दो अयनोंका एक वर्ष और पाच वर्षाका एक युग होता है ॥२२॥
माषादी' होति उडू, सिसिर-वसंता भिवाघ-पाउसया ।
सरमो हेमंता वि य, जामाई ताण जाणिज्नं ॥२६३।।
पर्व:-माष माससे प्रारम्भ कर जो ऋतुए होती हैं उनके नाम शिशिर, वसन्त, निदाघ (ग्रीष्म ), प्रावृष ( वर्षा ), शरद् और हेमन्त, इस प्रकार जानने चाहिए ॥२३॥
'वेषिक जगा इस परिसा, ते क्स-गुणिला हवेदि वास-सदं ।
"एवस्सि बस - गुणिदे, वास - सहस्सं बियाणेहि ॥२४॥
प्रपं:-दो युगोंके दस वर्ष होते हैं। इन दस वर्षोंको इससे गुणा करने पर गत ( सो) वर्ष और पतवर्षको दससे गुणा करने पर सहस्र ( हजार ) वर्ष जानना चाहिए ।।२६४||
वस वास-सहस्साणि, बास - सहसम्मि बस-हवे होति । 'तेहि यस • पुगिहि, सावं णामेण नादम् ॥२६॥
अपं:-सहन वर्षको दससे गुणा करनेपर दस-सहावर्ष और इनको भी दसमे गुणा करने पर लक्ष ( लाख ) वर्ष जानने पाहिए ।।२६५॥ --.-. -
1. ८.ब. क. ब. म. न. पा । २. क. ४. मामादी। 4. 5. वेरिण न. य.रोपिण, पिण। 1. पदेसि, क. य. एवस्ति । ५. प. य. इव। . प. य. दिदि ।