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गावा : २८२-२८६ ] पजत्थो महाहिगारो
[ १ भ:-स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण रहित, अनुरुलघुगुण सहित और वर्तमालक्षण युक्त ऐसा कालका स्वरूप है ।।२८१॥
कालास वो वियप्पा, मुस्खामुपक्षा हवंति एवेतु।।
मुक्सापार • बलेनं, अमुक्स - कालो पट्टेवि ।।२८२।।
भ:-कालके मुख्य ( निश्चय ) और अमुख्य ( व्यवहार ) इस प्रकार दो भेद है। इनमेंसे मुख्य कालके आश्रयसे प्रमुख्य ( व्यवहार ) कानकी प्रवृत्ति होती है ।।२८२।।
जोबाण प्रमालाणं, हर्षति परिवटटवाइ विविवार ।
एदान" पम्चीया, बट्टत मुक्स काल आधार शिक्षा
मपं:-जीवों और पुदगलों में विविध परिवर्तन हुपा करते हैं। इनकी पर्याय मुख्य-कामके मायसे प्रवतंती है ।।२३।।
सम्माग पयत्वाणं, पियमा परिणाम - पदि-वित्तीयो।
बहिरंतरंग - हेतू' हि सध्यम्मेवेसु बटॅति ॥२८४।।
प:-सर्व पदार्थोके समस्त भेदों में नियमसे बाए भोर अभ्यन्तर निमित्तोंके वारा परिणामादिक ( परिणाम, किया, परत्वापरत्व ) वृत्तिमा प्रयतंसी हैं ।।२८४।।
बाहिर-हे "कहियो, पिण्यप-कालो ति सम्यवरितीहि ।
अभंतरं निमित्त, गिय णिय वन्वेसु ठेवि ॥२५॥
मपं:-सर्वशदेवने निश्चय कालको सर्व पदार्थोके प्रवर्तनेका दाह्य निमित्त कहा है। म्यन्तर निमित्त ( स्वयं ) अपने-अपने द्रव्योंमें स्थित है ।।२।।
कालस्सा-भिन्ना, 'अन्लोण - पवेतमेण परिहोगा।
पुह पुह सोयायासे, चेते "संचएण विणा ॥२६॥
मय:-अन्योन्य-प्रवेशसे रहित कालके भिन्न-भिन्न अणु संचयके विना लोकाकाणमें पृषक-पृथक स्थित है ॥२८६१
१. प. प. उ. हि । २.क.ब.प. उ. कहिया। ३... पण, . प्रमा, य पाला। ४. प. प. पच्चएण।