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गाथा : २७१-२७७ ]
थो महाहियारो
सेसा वि पंच अंडा, नामेनं होति 'मेन्द्र
उतर तिथलंबे
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चक्कण मात्र मथणो, मूलोवरि मशेतु
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१.
६. विश्वास
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:- शेप पांचाही खण्ड खण्ड
इ नागसे, प्रसिद्ध है।, जुत्तर-सरतके तीन खण्होंने मध्यवर्ती खण्डके बहुमध्यमागमें चक्रवतियों के मानकों मर्दन करनेवाला, नाना चक्रवर्तियोंके नामोंसे अंकित ( आधारित ), मूल, मध्य एवं शिखरमें उन रत्नमय वृपमगिरि है ।। २३१-२७२ ।।
भगिरिका वर्णन—
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जोयण सथ मुविद्धो, पणुबी जोपणाणि गाढो ।
एक्क सम मूल-ह दो, पण्णत्तरि मज्झ वित्पारो ॥ २७३॥
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मक्रिम खंडस बहु-मम् ॥ २७९ ॥
मूलमें सौ (१००) योजन और मध्यमें पचहत्तर ( ७४ ) योजन विस्तारवाला है ।।२७३॥
जाजा चक्कर णाम- संयुगो । रयणमओ होनि बसहगिरी ।। २७२ ।।
। १०० । २५ । १०० १७५१
- यह पर्वत सौ ( १०० ) योजन ऊंचा, पच्चीस (२५) योजन प्रमाण नींववाला,
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पणास जोयचा, "बित्वारो होदि तस्स सिहरम्मि ।
मूलोभरि म बेटुले
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अर्थ :- वृषभरिका विस्तार शिवरपर पचास योजन प्रमाण है। इसके मूलमें, मध्यमें ओर उपर वेदियों एवं वनखण्ड स्थित हैं ॥ २७४ ॥
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ब-तोरणं 'बुता, पोलारिणी-वामि-कूप-परिपुष्णा ।
मरगय
वज्जिद बोल कस्केयन पउमरापमया ।।२७५।। हॉसि] हु बर पासावा, विचित्त-विन्यास-ममहरायारा ।
बिष्यंत रयन बीवा, बसह गिरिवरस सिहरम्मि ॥ २७६ ॥ बर-यन-कंचनमया, जिनमवा दिविहन्तु दराधारा ।
टुति बन्नचाओ, पुष्यं पिच होंसि सम्धाओं ॥ २७७॥
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| २. ६. न. सं
५. व. ब. क. म. म.उ. सो
वेदि बन संडा ॥ २७४॥
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३. ८. एकस्टम । Y. . . .
७. प. प. क्र