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सिलोय पणती
[ गाथा २६७-२७०
:- गङ्गा नदीके सहा सिन्धु नदी भी विजयाचंकी गुफाके उत्तर द्वारसे प्रवेशकर वेदी सहित दक्षिण द्वारसे निकलती है ।। २६६ ।।
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दक्षिण-भरहल
पाविय पश्चिम भारत-सित्वम्मि ।
बोस सहस्स सरिया, परिवारा पविसए ह ।। २६७ ।।
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एवं :- पश्चात् दक्षिण भरतके अर्ध धाराको प्राप्त कर चौदह हजार परिवार-नदियों सहित पश्चिम ( विद्या स्थित ) प्रभास तीबंपर समुद्र में प्रवेश करती है ॥ २६७॥
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तोरन उहाणी' गंगाए बन्दिा जहा पुणं । बसमा मिचन हिं ॥ २६८ ॥
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अर्थ :- जिस प्रकार पहले गङ्गानदीके वर्णनमें तोरणोंकी ऊँचाई भादिका विवेचन किया जा चुका है, उम्ररेप्रकार बुद्धिमानों को उन सबका कथन यहाँ भी कर लेना चाहिए || २६८ ॥
भरतक्षेत्र के खण्ड विभाग-
गंगा सिधु नहि, बेगड - कोन' भव्हतेसम्म
वनसं
संजाएं,
विभागं
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अर्थ :- गंगा एवं सिन्धु नदी भौर विजयार्थं पर्यंत भरतक्षेत्रके जो छह लण्ड हुए हैं, अब उनके विभागका प्ररूपण करता है ।। २६९ ॥
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पवेमो ।।२६१।।
उत्तर-बक्लिम-भरहे', 'संडानि तिमि होंति पक्कं ।
क्लिन-तिय- अक्वा संयत्ति 'मल्लिो ॥ २७० ॥
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:- उत्तर और दक्षिण भरतक्षेत्र में प्रत्येक क्षेत्रके तीन-तीन बण्ड हैं। दक्षिण-भरत के तीन खण्डों में मध्यवर्ती खण्ड आर्यन है ।।२७० ॥
ज. प. चहादी । २. ब. ब. स. प. प. उ. पस्वष्यं । . . . क. प. प. उ... म बा
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