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पापा : २६१-२६६ ] चउत्थो महाहियारो
[ ७७ प:-उत्तम रलों एवं स्वर्गसे निमित, प्रकाशमान किरणोंसे मुक्त तमा अंधकार समूहको नष्ट करने वाला यह प्रासाद उन्नत तोरणद्वारोंके सौन्दयंसे मले प्रकार सोभायमान है ।।२६०।।
तस्सि णिलए णिवसर, लषगा गामेष 'तरा - देवी ।
एकक • पलिदोषमाक', गिरथम • लावण्ण • परिपुष्णा ॥२६॥
मर्थ :- उस भवनमें एक पस्मोपम मायुवालो पौर अनुपम लावण्यते परिपूर्ण सवणा नामको ध्यन्तरदेवी रहती है ॥२६१।।
परम - दहावी पणुसये - मेताई जोयणाई गंतूणं । सियू - कूटमपचा',दु - कोसमेसेण वक्खिणावलिदा' ।।२६२॥ उभम-सम्वेवि सहिदा, उबवण-संगहि सुछ सोहिल्ला ।
गंग व पाय तिथू, निम्भाशे सिंध • कूर-उरिस्मि ।।२६।।
पर्ष:-पपदहसे पाचसौ योजन प्रमाण आगे जाकर, सिन्धुकूटको प्राप्त न होती हुई और उससे दो कोस पहिले ही दक्षिणको मोर सुरतो हुई, दोनों तटोंपर स्थित वेदिका सहित तथा उपवन खण्डोंसे भले प्रकार शोभायमान सिन्धु नदी गङ्गा नदीके समान जिबिकासे सिन्धुकटके काय गिरती है ॥२६२-२६३।।
क वीवो 'सेलो, भवणं भवनस्स उबरिमं कर। तस्सि लिगपडिमामओ, सर्व पुव्वं व वत्तव्वं ॥२६४।।
:-कुण्ड, द्वीप, पर्वत, भवन, भवनके ऊपर कूट और उसके ऊपर जिनप्रतिमाएं इन उदका कपन पहिलेके समान ही करना चाहिए ॥२६४।।
णवरि बिसेसो एसो, सिकूडमिम सिंधुदेवि ति।।
बहुपरिवारहि गुदा, उपभुजदि बिबिह-सोक्शाणि' ।।२६५।।
म :-विशेषता केवल यह है कि सिन्धु टपर बहुत परिवार सहित सिन्धुदेवो विविध सुखोंका उपभोग करती है ॥२६॥
गंगामई व सिष, विजयद्र - गुहास उत्सर । दुबारे । पविसिय वेदी - बुषा, बक्खिन • वारेण मिस्सरवि ।।२६।।
१. य. ज. वितरा। २. क. प. य. स. पमिलोबमानो। ३. ३. रु. *. य. २. मपत्तो। ४. क.स. बलियो। ... डीवा। क. प. उ. पेला । ७. द.ब.क.न.प. व मोक्शाएं।