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________________ ७४] तिलोमती आगंतून 'भियंते, पुण्य' मुहे 'मार्गहम्मि तित्यरे । चोस सहस्व सरिया परिवारा परिसमे - अर्थः [ गाया : २४७-२५१ :- इस प्रकार गङ्गामदी दक्षिण काशी प्रमाण परिवार नदियोंसे युक्त होती हुई मन्ततः मागच तोईपर समुद्र में प्रवेश करती है ।। २४७॥ ॥२४७॥ → अच्छाइये मे लंडे । गंगा - महाचबीए, कुवज- सरि-परिवारा, हुति म 'अन्य-संधि ||२४८ || :- कुण्डोंसे उत्पन्न हुई गङ्गा महानदीको ( ये ) परिवार नदियाँ दाई लेण्डों हो हैं, मार्यखण्ड में नहीं है ।। २४८ ॥ बासट्ठि जोयणाई, दोणि य कोसामि विश्वरा गंगा | पवेसन्पदेसम्म ॥ २४६॥ पण कोसा गाडस, उबहि :- समुद्र प्रवेश के प्रदेशमें गङ्गाका विस्तार बासठ-योजन दो -कोस ( ६२३ यो० } और गहराई पाँच कोस हो जाती है ।। २४६ ।। तोरणोंका सविस्तार वर्णन गोव-जगदीअ पासे, गहू- बिल-वदजम्मि तोरणं विव्यं । बिबिह-बर- रयण-सचिवं वंभट्टिय- सालभंजिया - विहं ।।२५०॥ वर्ष :- द्वीपकी वेदीके पास नदीजिसके मुखपर अनेक प्रकारके उत्तमोत्तम रत्नोंसे बचित और बम्बोंपर स्थित पुतलिकासमूहसे युक्त दिष्य तोरण है ।। २५० ।। संभाणं उच्छे हो, तेजवी बोयरपाणि तिथ होता । एवा अंतरानं बासट्ठी भोपरगा 'दुवे कोसा ॥२५१॥ । यो ६३ १ को ३ । ६२ । को २ | १.व.ब. क.अ.व.उ.विंतो । २.व.व.क. . व. पुष्यम हो । ३. य. मायमम्मि । 6. 7. 1916 5, T. 3. WE-finerie Y. T. R 1 ५. य. जसरि | ६. क. न. म.उ. सम्मि पाद-विवाद.. रे कोसो दूरे कोसा, म. म. वुरे कोचे, ब. पूरे फोटो, उ. पूरे कोक्षा |
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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