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गाया ९३-९६ ]
पढमी महाहियारो
उपमा प्रमाणके भेद
पल्ल समुद्दे जवमं अंगुलयं सूइ-पदर-घरण खामं । जगति-तोय-परो
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श्री लोक ये आठ उपमा प्रमाणके भेद हैं ।। १३ ।।
लोगो
॥ ६३ ॥
प. १ | सा. २ | सू. ३ । प्र. ४ । घ ५ । जं. ६ । लोय प. ७ । लोय
अर्थ :- पल्योपम, सागरोपम, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगच्छ्रेणी, लोक-प्रतर
३
४
Σ
१ २ ५ ६ ७ पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जग० लोक प्र० लोक ।
• पल्यके भेद एवं उनके विषयोंका निर्देश
बहारुद्वारा तिय-पल्ला पढमयम्मि संखाओ । विदिए दीय- समुद्दा तदिए मिज्जेदि कम्म- ठिदी ||४||
अर्थ :- व्यवहारपत्य, उद्धारपल्य और श्रद्धापल्य, ये पल्यके तीन भेद हैं । इनमें प्रथम पत्य संख्या, द्वितीयसे द्वीप - समुद्रादिक और तृतीयसे कर्मोकी स्थितिका प्रमाण लगाया जाता है ||१४||
स्कंध, देश, प्रदेश एवं परमाणुका स्वरूप
खं सयल - समत्थं तस्स य श्रद्ध भांति देसो त्ति ।
श्रद्धच पदेसो प्रविभागी होदि परमाणू ||५||
[ २१
अर्थ : – सब प्रकारसे समर्थ ( सर्वांशपूर्ण ) स्कंध, उसके अर्धभागको देश और आपके आधे भागको प्रदेश कहते हैं । स्कंध के विभागी ( जिसके और विभाग न हो सकें ऐसे ) अंशको परमाणु कहते हैं ।। ९५ ।।
परमाणुका स्वरूप
'सु-तिक्खेणं छेत्तु मेत्तु ं च जं किररण सक्को । जल - श्ररणलादिहिं णासं ण एवि सो' होदि परमाणू ॥ ६६ ॥
सत्थे
१. ब. सुतिकरण यच्छेत्तृ' च जं किरसक्का ।
अर्थ :- जो अत्यन्त तीक्ष्णशस्त्रसे भी छेदा या भेदा नहीं जा सकता, तथा जल श्रीर अग्नि श्रादिके द्वारा नाशको भी प्राप्त नहीं होता वह परमाणु है ।। ९६ ।।
२. द. ब. सा, ब. ज. ठसा ।