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गाथा : ६५-६९ ]
पढमो महाहियारो पूजा की गई है और जिन्होंने सम्पूर्ण पदार्थोके सारको देख लिया है, ऐसे महावीर भगवान् ( द्रव्य की अपेक्षा ) अर्थागमके कर्ता हैं ।। ५६-६४ ।।
क्षेत्रकी अपेक्षा अर्थ-कर्ना सुर-खेयर-मण-हरणे गुणणामे पंचसेल-णयरम्म' ।
विउलम्मि पटबदवरे वीर-जिणो अत्थ-कत्तारो ॥६५॥
अर्थ :-देव एवं विद्याधरोंके मनको मोहित करनेवाले और सार्थक नाम-वाले पंचशल ( पांच पहाड़ोंसे मुशोभित ) नगर ( राजगृही ) में, पर्वतोंमें श्रेष्ठ विपुलाचल पर श्री वीरजिनेन्द्र ( क्षेत्रकी अपेक्षा ) अर्थके कर्ता हए ॥६५॥
पंचनल
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चउरस्सो पुवाए रिसिसेलो' वाहिणाए बेभारो।
रणइरिदि-दिसाए विउलो दोणि तिकोपट्टिदायारा ॥६६॥ अर्थ :-(राजगृह नगरके) पूर्व में चतुष्कोण ऋषिशैल, दक्षिण में वैभार और नैऋत्यदिशामें विपुलाचल पर्वत हैं, ये दोनों, वैभार एवं विपुलाचल पर्वत त्रिकोण प्राकृतिसे युक्त हैं ।।६६।।
चाव-सरिच्छो छिरणो वरुणारिणल-सोमदिस-विभागेसु ।
ईसारगाए पंडू बट्टो' सवे कुसग्ग-परियरणा ॥६७।। अर्थ :-पश्चिम, वायव्य और सोम ( उत्तर ) दिशामें फैला हुआ धनुषाकार छिन्न नामका पर्वत है और ईशान दिशामें पाण्डु नामका पर्वत है। उपर्युक्त पांचोंही पर्वत कुशाग्रोंसे वेष्टित हैं ।। ६७ ॥
कालकी अपेक्षा अर्थकर्ता एवं धर्मतीर्थकी उत्पनि एत्थावसप्पिरपीए चउत्थ-कालस्स चरिम-भागम्मि । तेत्तीस-वास- अडमास - पण्णरस - दिवस-सेसम्मि ॥६॥ वासस्स पढम-मासे सावण-णामम्मि बहल-पडिवाए। अभिजीरणक्खतम्मि य उप्पत्ती धम्म-तित्थस्स ॥६॥
१. द. णययमि। २. द. ब, ज. क. ४. मिरिसेलो। ३, इ. ज. क. ठ. वप्पा हो ।