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गाथा : ५४ ५८ ]
पदमो महाहियारो
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अर्थ :- श्रुत, विविध प्रकारके अर्थोंको अपेक्षा अनन्त है और अक्षरोंकी गणनाको अपेक्षा संख्यात है । इसप्रकार शिष्योंकी वृद्धिको विकसित करनेवाले इस श्रुतका प्रमारण कहा गया है ।। ५३ ।।
।। इसप्रकार प्रमाणका वर्णन हुआ ।।
ग्रन्थनाम कथन
भय्यारण जेण एसा ते लोक्क पयासणे परम- दीवा । तेण गुण-णाममुदिदं तिलोयपण्णत्त गामेणं ॥ ५४ ॥
॥ णामं गदं ॥
अर्थ :- यह ( शास्त्र ) भव्य जीवोंके लिए तीनों लोकोंका स्वरूप प्रकाशित करने में उत्कृष्ट दीपकके सदृश है, इसलिए इसका 'त्रिलोकप्रज्ञप्ति' यह सार्थक नाम कहा गया है || ५४ || ।। इसप्रकार नामका कथन पूर्ण हुआ ।। कर्ता के भेद
कत्तारो दुवियप्पो गायन्नो प्रत्य-ग्रंथ-भेदेहि ।
व्यादि चउपयारे पासिमो प्रत्थ कत्तारं ॥ ५५ ॥
अर्थ :- अर्थकर्ता और ग्रन्थकर्ता के भेदसे कर्ता दो प्रकारके समझना चाहिए। इनमें से द्रव्यादिक चार प्रकार से अर्थकर्ताका हम निरूपण करते हैं ।। ५५ ।।
द्रव्यकी अपेक्षा अर्थागमके कर्ता
सेव- रजाइ मलेणं रतच्छि - कडवख वाण- मोक्खेहिं । इय-पहुदि देह- दोसेहि संततमवसिद सरीरो (य) ॥ ५६ ॥ आदिम संहरणरण-जुदो समचजरस्संग- चारु संठारणो । विव्व-बर-गंधधारी पमाण- विद-रोम णहरूवो ॥५७॥ णिभूणायुहंबर भी दो सोम्माणणादि-दिव्य-तणू । अट्टम्भहिय सहस्सध्यमारण वर लक्खणोपेदो ||५८ ||
१. ब. अत्थकत्तारो ।
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