________________
गाथा ४६-४९ ] पढमो महाहियारो
[११ अर्धमण्डलीक एवं मण्डलीकका लक्षण दु-सहस्स-मउडबद्ध-भुव-बसहो' तत्थ सहमग्निको।
चउ-राज-सहस्साणं अहिणाहो होइ मंडलियो ।।४६।।
अर्थ :- दो हजार मुकुटबद्ध भूपोंमें वृषभ ( प्रधान ) अर्धमण्डलीक तथा चार हजार राजाओं का स्वामी मण्डलीक होता है ।।४६।।
___ महामण्डलीक एवं अर्धचक्रीका लक्षण महमंडलिया णामा अट्ठ-सहस्सारण अहिबई ताणं ।
रायाण अद्धचक्की सामी सोलस-सहस्स-मेत्ताणं ।।४७।। अर्थ :-पाठ हजार राजानोंका अधिपति महामंडलीक होता है तथा सोलह हजार राजाओंका स्वामी अर्धचकी कहलाता है ।।४७ ।।
चक्रवर्ती और तीर्थकर का लक्षण छक्खंड-भरहणाहो बत्तीस-सहस्स-मउडबद्ध-पहुदोश्रो । होवि हु सयलंचक्की तित्थयरो सयल-भुवणबई ।।४८॥
॥ अभ्युदय-सोक्खं गदं ।। अर्थ :-छह खण्ड रूप भरतक्षेत्रका स्वामी और बत्तीसहजार-मुकुटबद्ध राजाओंका तेजस्वी अधिपति सकलत्रक्री एवं समस्त लोकोंका अधिपनि तीर्थकर होता है ।।४।।
11 इस प्रकार अभ्युदय सुखका कथन समाप्त हुआ ।
___ मोशमुख सोक्खं तित्थयराणं सिद्धाणं तह य इंदियादीदं । अदिसयमाद-समुत्थं णिस्सेयसमणुवमं पवरं ॥४६।।
।। मोक्ष-सोक्खं गदं ।।
१.द.क. ज.ठ बद्धासेसहो।
--. - - २.द. ब. ज. क. ठ. मंडलियं ।
--
- -. . . ३. द. पचराग तह इंदियादी ।
ज, पयराणं तह य इंदियादीदं । ठ पथराणं तह य इंदियादीहि । क, पातीदारग तह य इदियादी।