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विषय गाथा पृ० सं० । विषय
गाथा/पृ० सं० जिनालयों की शोभा का
| असुरकुमार आदि देवों का वर्णन ४६-५० । २७६ गमन
१२३-१२५ । ३०१ नागपक्ष मुगलों से युक्त जिन
भवनवासी देव-देवियों के शरीर प्रतिभाएं
५१ । २७६ एवं स्वभावादि का जिनभवनों की संख्या ५२ । २७६ निरूपण १२६-१३० । ३०१ भवनबासी देव जिनेन्द्र को ही
असुरकुमार आदिकों में पूजते हैं ५३-५४ । २८० प्रवीचार
१३१-३२ । ३०२ १४ प्रासावों का वर्णन (गा. ५५-६१)
इन्द्र-प्रतीन्द्रादिकों की छत्रादि विभूतियाँ
१३३-३४ । ३०३ कूटों के चारों ओर स्थित भवनवासी __ देवों के प्रासादों का
इन्द्र-प्रतीन्द्रादिकों के चिह्न १३५ । ३०३ निरूपण ५५-६१ १ २८०.८१
असुरादि कुलों के चिन्ह स्वरूप
वृक्षों का निर्देश १३६-३७ । ३०३ १५ इन्द्रों को विभूति (गा० ६२-१४३)
जिनप्रतिमाएँ व मानस्तम्भ १३८-४१ । ३०६ प्रत्येक इन्द्र के परिवार देव-देवियों का
चमरेन्द्रादिकों में परस्पर निरूपण ६२-७६ । २८२-८५ ईर्षाभाव
१४२-४३ । ३०६ अनीक देवों का वर्णन ७७-८६ । २८६-२९०
१६. भवनवासियों को संख्या १४४ । ३०७ भवनवासिनी देवियों का
१७ भवनवासियों की प्रायु (गा० १४५-१७६) निरूपण
९०-१०९ । २६१ अप्रधान परिवार देवों का
भवनवासियों की प्रमाण
११० । २६८
आयु............ १४५-१६२ । ३०७-३१३ भवनवासी देवों का आहार और
आयु की अपेक्षा सामर्थ्य १६३-६६ 1 ३१४ उसका काल प्रमाण १११-११५ । २१८
आयु की अपेक्षा विक्रिया १६७-६८ । ३१४-१५ भवनवासियों में उच्छ्वास के समय
पायु की अपेक्षा गमनागमनका निरूपण ११६-११८ । २६९ शक्ति
१६९-७० । ३१५ प्रतीन्द्रादिकों के उच्छ्वास का ।
भवनवासिनी देवियों की प्रायु १७१-७५ ॥ ३१५ निरूपण
भवनवासियों की जघन्य आयु ११६1३००
१७६ । ३१६ असुरक्रुमारादिकों के वरों का
१६ भवनवासी देवों के शरीर का निरूपण १२०-२२ । ३०० । उत्सेध
१७७ । ३११