________________
विषय
असुरकुमार देवों की जातियां एवं उनके कार्य
नरकों में दुःख भोगने की अवधि
गाथा, पृ० सं०
३५१-३५३ । २५९-६०
नरकगति की उत्पत्ति
के कारण अधिकारान्त मङ्गलाचरण
तृतीय महाधिकार
नरकों में उत्पन्न होने के अन्य
भी कारण १४. नरकों में सम्यवत्व ग्रहण के कारण (गा. ३६२-६४ ) २६२ १५. नारकियों की योनियों का कथन (गा. ३६५) २६३
३५४-३५७ । २६०
३५८-३६१ । २६१
३६६-३७० । २६३-२६४
३७१ । १६४
[ मा. १-२५५ ] [प्र.२६५-३३५]
१ १ २६५
मङ्गलाचरण
भावनलोक निरूपण में चौबीस अधिकारों का निर्देश
२-६ । २६५
१. भवनवासी देवों का निवास क्षेत्र ७-८ । २६६
२. भवनवासी देवों के मेव । २६६
३. भवनवासियों के चिह्न १० । २६७
४. भवनवासी देवों की भवन
संख्या ११-१२ । २६७
५. भवनवासी देवों में इन्द्रसंख्या १३ । २६८ ६. मवनवासी इन्द्रों के नाम १४-१६ । २६८ ७. दक्षिणेन्द्रों और उत्तरेन्द्रों का
विभाग १७-१६ । २६६
७५
विषय
८. भवनों का वर्णन ( गा० २०-२३)
भवन संख्या २०-२१।२७० निवास स्थानों के भेद एवं स्वरूप २२-२३ । २७२ ६. प्रपद्धिक, महसिक और मध्यम ऋद्धि
धारक देवों के भवनों के स्थान २४ । २७२ १०. भवनों का विस्तारावि एवं उनमें
निवास करने वाले देवों का प्रमाण २५-२६ । २७३
११. वेदियों का वर्णन (गा. २७-३८) भवनवेदियों का स्थान, स्वरूप तथा उत्सेध आदि वेदियों के बाह्य स्थित वनों का निर्देश
गाथा / पृ० सं०
१२ वेदियों के मध्य में कूटों का निरूपण
२७-२६ २७३
३० । २७४
३१-३६ । २७४
चैत्यवृक्षों का वर्णन
चैत्यवृक्षों के मूल में स्थित जिनप्रतिमाएँ
३७-३८ । २७६
३६-४१ । २७६
४२-५४ )
१३. जिनभवनों का निरूपण (गा कूटों पर स्थित जिनभवनों का निरूपण महाध्वजाओं एवं लघुध्वजाओं की संख्या जिनालय में वन्दनगृहों श्रादि का वर्णन
श्रत आदि देवियों व यक्षों की मूर्तियों का निरूपण
श्रष्ट मंगलद्रव्य
४२-४४ । २७७
४५ १२७८
४६ १२७८
४७ १२७८ ४८ । २७६