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विषय गाथा पृ० सं० । विषय
गाथा/पृ० सं० १६ अवधिज्ञान के क्षेत्र का प्रमाण
बन्धयोग्य परिणाम २०१-२०४ । ३२२ (गा० १७८-१८३)
देब दुर्गतियों में उत्पत्ति के कारण २०५ । ३२३ ऊर्ध्व दिशा में उत्कृष्ट रूप से अवधि
कन्दर्प देवों में उत्पत्ति के कारण २०६ । ३२३ क्षेत्र का प्रमाण
१७८ । ३१७
वाहन देवों में उत्पत्ति के कारण २०७ । ३२३ अधः एवं तिर्यग्क्षेत्र में अवधिज्ञान
किल्विषक देवों में उत्पत्ति के का प्रमाण
१७९ । ३१७ कारण
२०८ । ३२४ क्षेत्र एवं कालापेक्षा जघन्य अवधि
सम्मोह देबों में उत्पत्ति के कारण २०६ । ३२४ ज्ञान
असुरों में उत्पन्न होने के कारण २१० । ३२४ असुरकुमार देवों के अवधिज्ञान
१८१ । ३१८
उत्पत्ति एवं पर्याप्ति वर्णन का प्रमाण
२११ । ३२४ शेष देवों के अवधिज्ञान
सप्तादि धातुओं व रोगादि का का प्रमाण
१८२ । ३१६ निषेध
२१२-१३ । ३२५ प्रवधिक्षेत्र प्रमाण विक्रिया १८३ । ३१८
भवनवासियों में उत्पत्ति २०. भवनवासी देवों में गुणस्थानाविक का
__ समारोह धर्णन (गा० १८४-१६६)
विभंगज्ञान उत्पत्ति
२१७ । ३२६ अपर्याप्त ब पर्याप्त दशा में
नवजात देवकृत पदचात्ताप २१८-२२२ । ३२६ गुणस्थान
१८४-८५ । ३१६ सम्यक्त्वग्रहण
२२३ । ३२७ उपरितन गुणस्थानों की विशुद्धि
अन्य देवों को सन्तोष
२२४ । ३२७ विनाश के फल से भवनवासियों
जिनपूजा का उद्योग २२५-२७ । ३२७ में उत्पत्ति
१८६-८७ । ३१६
जिनाभिक एवं पूजन आदि २२८-३८ । ३२८ जीव समास पर्याप्ति
१८८ । ३२० पूजन के बाद नाटक
२२६ 1 ३३० प्राण
१८४ । ३२०
सम्बरष्टि एवं मिथ्यादृष्टि देव के संज्ञा, गति, योग, वेद. कषाय, ज्ञान,
पूजनपरिणाम और अंतर २४०-४१ । ३३० दशन, लेश्या, भव्यत्व, उपयोग १६०-६६ । ३२०-२१ जिनपूजा के पश्चात्
२४२ । ३३१ २१. एक समय में उत्पत्ति एवं मरण का प्रमाण
भवनवासी देवों के (गा. १९७) ३२१
सुखानुभव २४३-२५० । ३३६-३३३ २२. मवनवासियों को प्रागति निर्देश
२४, सम्यक्त्व ग्रहण के कारण (गा. २५१-२५२) (गा. १९८-२००) ३२२
भवनवासियों में उत्पत्ति के २३. भवनबासी देषों को प्राधु के बन्ध योग्य
कारण
२५३-५४ । ३३४ परिणाम (गा. २०१-२५०) महाधिकारान्त मंगलाचरण २५५ । ३३५