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विषय गाथा/पृ० सं० । विषय
___ गाथा/पृ० सं० सुच्यंगुल और जगच्छणी के लक्षण १३१ । ३० । मध्यलोक के ऊपरी भाग से अनुत्तर विमान सुच्यंगुल आदि का तथा राजू का
पर्यन्त राज विभाग १५८-६२ । ४१ लक्षण
१३२ । ३० कल्प एवं कल्पातीत भूमियों का अंत १६३ । ४२ सामान्य लोक स्वरूप (गा. १३३-२६६)
अधोलोक के मुख और भूमि का विस्तार एवं ऊँचाई
१६४ १ ४३ लोक स्वरूप
१३१-१३४ । ३१ अधोलोक का घनफल निकालने की लोकाकाश एवं अनोकाकाश १३५ । ३२ विधि
१६५ । ४३ लोक के भेद
पूर्ण अधोलोक एवं उसके अर्धभाग के तीन लोक की प्राकृति १३७-३८ । ३२ घनफल का प्रमाण
१६६ । ४३ अधोलोक का माप एवं आकार १३९ । ३३ अधोलोक में सनाली का धनफल १६७ । ४४ सम्पूर्ण लोक को वर्गाकृति में लाने का
असनाली से रहित और उसके सहित विधान एवं आकृति १४० । ३४ अधोलोक का घनफल १६८ । ४४ लोक की डेढ़ मृदंग सदृश प्राकृति बनाने
ऊर्ध्वलोक के आकार को अधोलोक का विधान
१४१-४४ । ३५ स्वरूप करने की प्रक्रिया सम्पूर्ण लोक को प्रतराकार रूप करने का
एवं आकृति
१६६ । ४५ विधान
१४५-४७ । ३६ ऊर्ध्व लोक के व्यास एवं ऊँचाई त्रिलोक की ऊँचाई, चौड़ाई और मोटाई के
का प्रमाण
१७० । ४६ वर्णन की प्रतिज्ञा
१४८ । ३७
सम्पूर्ण ऊर्ध्वलोक और उसके दक्षिण उत्तर सहित लोक का प्रमाण
अर्धभाग का घनफल १७१ । ४६ __ एवं आकृति
१४९ । ३७
ऊध्वलोक में प्रसनाली का घनफल १७२ । ४६ अधोलोक एवं उर्ध्वलोक की ऊँचाई में
श्रसनाली रहित एवम् सहित सहशता
१५० । ३८
ऊर्ध्व लोक का घनफल १७३ । ४६ तीनों लोकों की पृथक्-पृथक् ऊँचाई १५१ । ३६
सम्पूर्ण लोक का घनफल एवं लोक अधोलोक में स्थित पृथिवियों के नाम
के विस्तार कथन की प्रतिज्ञा १७४ । ४७ और उनका अबस्थान १५२ । ३६
अधोलोक के मुख एवं भूमिका रत्नप्रभादि पृथिवियों के गोत्र नाम १५३ । ४०
विस्तार तथा ऊँचाई १७५ । ४८ मध्यलोक के अधोभाग से लोक के अन्त प्रत्येक पृथिवी के चय निकालने पर्यन्त राज विभाग १५४-१५७ । ४० । का विधान
१७६ १४८