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********** * विषपानुक्रम
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विषय गाथा/पृ० सं० । विषय
गाथा/पृ० सं० mmmmmmmmms
मंगलाचरण के प्रादिमध्य और प्रस्त
[गा० १-२८६] १ प्रथम
भेद
२८1७ । महाधिकार (१ --१३८ पृ०) Sammmmmmmint
आदि मध्य और अन्त मंगल की मङ्गल (गा० १ । ३१) सार्थकता
२६ । ७ मङ्गलाचरण : सिद्ध स्तवन
जिननाम ग्रहण का फल अरहन्त स्तवन ग्रंथ में मंगल का प्रयोजन
३१ । ७ आचार्य स्तवन
प्रन्यावतारनिमित्त (गा० ३२-३४) ८ उपाध्याय स्तवन साधु स्तवन
अस्थावतार हेतु (गा० ३५-५२) ८-१२ ग्रन्थरचना प्रतिज्ञा
हेतु एवं उसके भेद
३५।८ ग्रन्थारम्भ में करणीय छह कार्य
प्रत्यक्ष हेतु
३६-३८ । मंगल के पर्यायवाचक शब्द
परोक्ष हेतु एवं अभ्युदय सुख ३६-४११६ मंगल शब्द की निरुक्ति
६।३ राजा का लक्षण
४२ । १० मंगल के भेद
१०।
अठारह श्रेणियों के नाम ४३-४४ ११० द्रव्यमल और भावमल
अधिराज एवं महाराज का लक्षण ४५ । १० मंगल शब्द की सार्थकता . १४।४
अर्धमण्डलीक एवं मण्डलीक का मंगलाचरण की सार्थकता १५-१७ । ४
लक्षण
४६ । ११ मगलाचरण के मामादिक छह भेद १८1५
महामण्डलीक एवं अर्धचक्री का नाम मंगल
लक्षण स्थापना व द्रव्यमंगल २०। ५ चक्रवर्ती और तीर्थंकर का लक्षण
४८ । १.१ क्षेत्रमंगल
मोक्षमुख काल मंगल
२४-२६ । ६ श्र तज्ञान की भावना का फल ५० । १२ भाय मंगल २७ । ७ | परमागम पढ़ने का फल
५१ । १२