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इसी प्रकार
प्रतरांगुल=(सूच्यंगुल राशि ), संदृष्टि ४ घनांगुल -- ( सूच्यंगुल राशि ), संदृष्टि ६
= ( जा िसंहल्टि'=' घनलोक=( जगणि राशि ), संदृष्टि '='
राजु -(जगधेरिणः७), संदृष्टि '' ये सभी प्रदेश राशियां हैं और इनका सम्बन्ध पल्योपमादि समय राशियों से स्थापित किया गया है।
गाथा १/१६५
इस गाथा में अधोलोक का घनफल निकालने के लिये सूत्र दिया गया है, जो वेत्रासन सदृश है।
घनफल वेत्रासन = [सुख : भूमि x बेध] | यहां वेध का भयं ऊँचाई है। माथा १९६६
. अधोलोक का घनफल=x पूर्ण लोक का घनफल
अर्द्ध अधोलोक का घनफल-४ पूर्ण लोक का घनफल गाथा १/१७६-१७७ : इस गाथा में समानुपाती भाग निकालने का सूत्र दिया गया है । प्र मुरब
वृद्धि भूमि-मुख
उत्सेध यहाँ उ उत्सेष का प्रतीक और
ब्या व्यास का प्रतीक है। सध
भूमि-भूमिमुख उ, च्या, भूमि-[भूमिम्मुख उ-व्या.
व्यान
उत्सधा
इसी प्रकार हानि का सूत्र प्राप्त करते हैं।