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२००० धनुष या २००० नाली = १ कोश; ४ कोश = १ योजन ।
अतएव जिसप्रकार का अंगुल चुना जावेगा, स्वमेव उस प्रकार का योजन उत्पन्न होगा | प्रमाण अंगुल किये जाने पर प्रमाण योजन और उत्सेध अंगुल किये जाने पर उत्सेध योजन प्राप्त होगा |
योजन को प्रमाण लेकर व्यवहार पत्योपम का वर्षों में मान प्राप्त हो जाता है । इस हेतु गड्ढे में रोमों की संख्या = ३४ (४)' (२०००) (४) ' (२४)' (५००) (८) १ प्राप्त होती है । यह व्यवहार पल्य के रोमों की संख्या है जिसमें १०० का गुणन करने पर व्यवहार पल्योपम काल राशि वर्षो में प्राप्त हो जाती है। तत्पश्चात्
उद्धार पल्य राशि= व्यवहार पल्य राशि X असंख्यात करोड़ वर्ष समय राशि
यह समय राशि ही उद्धारपल्योपस काल कहलाती है। इस उद्धारपत्य राशि से द्वीपसमुद्रों का प्रमाण जाना जाता है ।
अढापल्य राशि = उद्धारपत्य राशि x असंख्यात वर्ष समय राशि
यह समय राशि ही अद्धा पल्योपम काल राशि कहलाती है। इस श्रद्धापत्य राशि से नारकी, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवों की आयु तथा कर्मों की स्थिति का प्रमाण ज्ञातव्य है ।
१० कोड़ाकोड़ी व्यवहार पत्य
१० कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्य
१० कोड़ाकोड़ी अद्धा पत्थ
गाथा १/१३१, १३२
सूच्यंगुल में जो प्रदेश राशि होती है उसकी संख्या निकालने के लिए पहिले अद्धा पत्य के श्रर्द्धच्छेद निकालते हैं और उन्हें शलाका रूप स्थापित कर एक एक शलाका के प्रति पत्य को रखकर आपस में गुणित करते हैं। जो राशि इस प्रकार उत्पन्न होती है वह सूच्यंगुल राशि है :
( पल्य के अर्द्धच्छेद )
इसी प्रकार
१ व्यवहार सागरोपम
१ उद्धार सागरोपम
१ अद्धा सागरोपम
सूच्यंगुल = [ पत्य ]
( पल्य के अर्द्धच्छेद )
असंख्यात
जगच्छ्रेणी = [ घनांगुल ]
यहाँ सूच्यंगुल राशि की संदृष्टि २ और जगच्छ्रेणी की संदृष्टि "" है ।