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जिसप्रकार असंख्यात एवं अनन्त रूप राशियाँ उत्पन्न की गई, जिनका दर्शन क्रमशः अवधिज्ञानी और केवलज्ञानी को होता है, उसीप्रकार उपमा प्रमाण में आने वाली प्रतिनिधि राशियाँ, अंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगच्छ्रेरणी, जगत्प्रतर, लोक, पल्य और सागर में प्रदेश राशियों और समय राशियों को निरूपित करती हैं जो द्रव्य प्रमाणानुगम में अनेक प्रकार की राशियों की सदस्य संख्या को बतलाती हैं । इसप्रकार प्रकृति में त्रिलोक में पायी जाने वाली अस्तिरूप राशियों का बोध इन रचनात्मक संख्या प्रमाण एवं उपमाप्रमाण द्वारा दिया जाता है । इसीप्रकार अल्पबहुत्व एवं धाराओं द्वारा राशि को सही सही स्थिति का बोध दिया जाता है ।
उपमा प्रमाण के आधारभूत प्रदेश और समय हैं । प्रदेश की परिभाषा परमाणु के आधार पर है। प्रभेद्य पुद्गल परमाणु जितना आकाश व्याप्त करता है उतने आकाशप्रमाण को प्रदेश कहते हैं । इसप्रकार अंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल में प्रदेश संख्या निश्चित की गई है । इसीप्रकार जगच्छ्रेणी, जगत्प्रतर और घन लोक में प्रदेश संख्या निश्चित हैं । पल्य और सागर में जो समयराशि निश्चित की गई है, वह समय भी परिभाषित किया गया है। परमाणु जितने काल में मंद गति से एक प्रदेश का प्रतिक्रमण करता है अथवा जितने काल में तीव्र गति से जगच्छ्रेणी तय करता है वह समय कहलाता है । जिसप्रकार परमाणु अविभाजित है वैसे ही प्रदेश एवं समय की इकाई अविभाजित है ।
आकाश में प्रदेशबद्ध श्रेणियां मानकर जीव एवं पुद्गलों की ऋजु एवं विग्रह गति बतलाई गई है । तस्वार्थ राजबातिक में अकलंकाचार्य ने निरूपण किया है कि चार समय से पहिले ही मोड़े वाली गति होती है, क्योंकि लोक में ऐसा कोई स्थान नहीं है जिसमें तीन मोड़े से अधिक मोड़े लेना पड़े। जैसे पष्टि चांवल साठ दिन में नियम से पक जाते हैं उसी प्रकार विग्रहगति भी तीन समय में समाप्त हो जाती है । (तवा. वा. २, २८, १३
अंक गणना में शून्य का उपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । उदाहरणार्थ तिलोयपण्णत्ती (गाथा ३१२, चतुर्थं महाधिकार ) में अचलात्म नामक काल को एक संकेतना द्वारा दर्शाया गया है। यह मान है (६४) * (१०) १० प्रमाण वर्षं । अर्थात् ८४ में ६४ का ३१ बार गुणन और १० का १० मैं ६० बार गुणन । यहीं गितसंगित प्रक्रिया का भी उपयोग किया गया है । जैसे यदि २ को तीन बार गितसंगित किया जाये तो (२१६) २५६ अर्थात २५६ में २५६ का २५६ बार गुणन करने पर यह राशि उत्पन्न होगी ।
जहां वर्गरणसंवर्गण से राशि पर प्रक्रिया करने पर इष्ट बड़ी राशि उत्पन्न कर ली जाती है वहीं अर्द्ध च्छेद एवं वर्गशलाका निकालने की प्रक्रिया से इट छोटी राशि उत्पन्न कर ली जाती है । एक