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तिलोयपण्णत्ती और उसका गणित (लेखक : लक्ष्मीचन्द्र जैन, प्राचार्य, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय )
छिदवाड़ा (म०प्र०) आचार्य यतिवृषभ द्वारा रचित तिलोयपण्णत्ती करणानुयोग विषयक महान् नन्ध है जो प्राकृत भाषा में है । यह त्रिलोकवर्ती विश्व-रचना का सार रूप से गणित निबद्ध दर्शन कराने वाला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसका प्रथम बार सम्पादन दो भागों में प्रोफेसर हीरालाल जैन, प्रोफेसर ए. एन. उपाध्ये तथा पंडित बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री द्वारा १९४३ एवं १६५१ में सम्पन्न हुआ था । पूज्य आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी कृत हिन्दी टीका सहित अब इसका द्वितीय बार सम्पादन हो रहा है जो अपने आपमें एक महान् कार्य है, जिसमें विगत सम्पादित ग्रंथों का परिशोधन एवं विश्लेषण तथा अन्य उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियों द्वारा मिलान किया जाकर एक नवीन, परम्परागत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
तिलोयपणती ग्रन्थ का विशेष महत्त्व इसलिए है कि कर्मसिद्धान्त एवं अध्यात्म-सिद्धान्तविषयक ग्रन्थों में प्रवेश करने हेतु इस ग्रंथ का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। कर्म परमाणुओं द्वारा आत्मा के परिणामों का दिग्दर्शन जिस गणित द्वारा प्रबोधित किया जाता है, उस गणित की रूपरेखा का विशेष दूरी तक इस ग्रंथ में परिचय कराया गया है । इसप्रकार यह ग्रंथ अनेक ग्रन्थों को भलीभांति समझने हेतु सुदृढ़ प्राधार बनता है।
यतिवृषभाचार्य की दो कृतियां निविवाद रूप से प्रसिद्ध मानी गई हैं जो क्रमशः कसरयपाइडमुत्त पर रचित चूणिसूत्र और तिलोयपणाती हैं । प्राचार्य आर्यमक्ष एवं आचार्य नागहस्ति जो "महाकम्मपडि पाहुद्ध" के ज्ञाता थे उनसे यतिवृषभाचार्य ने कसायपाहुड के सूत्रों का व्याख्यान ग्रहण किया था, जो 'पेज्जदोसपाहुड' के नाम से भी प्रसिद्ध था। आचार्य वीरसेन ने इन उपदेशों को प्रवाहझम से आये घोषित किया है तथा प्रवाहमान भी कहकर यथार्थ तथ्य रूप उल्लेषित किया है । आगे उन्होंने प्राचार्य प्रार्थमंक्षु के उपदेश को 'अपवाइज्जमारण' और आचार्य नागहस्ति के उपदेश को 'पवाइज्जत' कहा है।
तिलोयपण्रपत्ती के रचयिता यतिवृषभाचार्य कितने प्रकांड विद्वान् थे यह चूणिसूत्रों तथा तिलोयषण्णत्ती की रचना-शैली से स्पष्ट हो जाता है । रचनाएँ वृत्तिसूत्र सथा चूर्णिसूत्र में हुमा