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प्रो० लक्ष्मीचन्द्रजी जैन, प्राचार्य शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, छिंदवाड़ा (म. प्र. ) ने "तिलोय पण्णत्ती का गणित विषय लिख भेजा है, एतदर्थ में उनका हार्दिक आभार मानता हूं । प्रोफेसर सा० जैन गणित के विशेषज्ञ हैं । जैनागम में भावकी टूट आस्था है ।
हस्तलिखित प्रतियों से पाठ का मिलान करने में और निर्णय लेने में हमें डॉ० उदयचन्दजी जैन, प्राध्यापक प्राकृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर का भी प्रभूत सहयोग प्राप्त हुआ है। मैं राहें हार्दिक सम्वाद देता हूं -
प्रस्तुत संस्करण में मुद्रित चित्रों को रचना श्री विमलप्रकाशजी अजमेर और श्री रमेशचन्द्र मेहता उदयपुर ने की है। वे धन्यवाद के पात्र हैं ।
विशेषार्थ पूर्वक ग्रंथ की सरल एवं सुबोध हिंदी टीका करने का श्रम तो पूज्य माताजी १०५ श्री विशुद्धमतीजी ने किया ही है साथ ही इस प्रकाशन - अनुष्ठान के संचालन का गुरुतर भार भी उन्होंने वहन किया है । उनका धैर्य, कष्टसहिष्णुता, त्याग तप और निष्ठा प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। गत दो-ढाई वर्षों से वे ही इस महदनुष्ठान को पूर्ण करने में जुटी है, अनेक व्यवधानों के बाद यह प्रथम खण्ड ( प्रथम तीन अधिकार ) आज श्रापके हाथों में देकर हमें गौरव का अनुभव हो रहा है । दूसरा खण्ड (चतुर्थ अधिकार ) भी प्रेस में जाने को तैयार है; यदि अनुकूलता रही तो दूसरा और तीसरा दोनों खण्ड अगले दो वर्ष में प्रस्तुत कर सकेंगे। पूज्य माताजी ने इस ग्रंथ के सम्पादन का गुरुतर उत्तरदायित्व मुझे सौंप कर मुझ पर जो अनुग्रह किया है और मुझे जिनवाणी की सेवा का जो अवसर दिया है, उसके लिए मैं पू० आर्यिका श्री का चिरकृतज्ञ हूं । सततस्वाध्यायशीला पूज्य माताजी अध्ययन-अध्यापन में ही अपने समय का सदुपयोग करती हैं । यद्यपि अब प्रापका स्वास्थ्य अनुकुल नहीं रहता है तथापि आप अपने कर्त्तव्यों में सदैव दृढ़तापूर्वक संलग्न रहती हैं । पूज्य माताजी का रत्नत्रय कुशल रहे और स्वास्थ्य भी अनुकूल बने ताकि वे जिनवाणी के हार्द को अधिकाधिक सुबोध रीति से प्रस्तुत कर सकें यही कामना करता हूं । पूज्य माताजी के चरणों में शतशः वन्दामि निवेदन करता हूँ |
ग्रन्थ के प्रकाशन का उत्तरदायित्व श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा ने बहन किया है एतदर्थ में महासभा के प्रकाशन विभाग एवं विशेष रूप से महासभाध्यक्ष श्री निर्मलकुमारजी सेठी को हार्दिक धन्यवाद देता हूं ।
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ग्रन्थ का मुद्रण कमल प्रिन्टर्स मदनगंज - किशनगढ़ में हुआ है । दूरस्थ होने के कारण प्रूफ स्वयं नहीं देख सका हूं अतः यत्किचित् भूलें रह गई हैं । पाठकों से अनुरोध है कि वे स्वाध्याय से पूर्व शुद्धिपत्र के अनुसार श्रावश्यक संशोधन अवश्य कर लें ।