________________
विषय
अधिकार/गाथा १५ भवनवासी देवों के आहार एवं श्वासोच्छ्वास का अन्तराल तथा चैत्यवृक्षादि का विवरण
३/१११-१३७ १६ भवनवासी इन्द्रों की (सपरिवार) आयु के प्रमाण का विवरण ३१२-१३ ३/१४४-१६० ११. आभार :
'तिलोयपण्णत्ती' जैसे विशालकाय ग्रन्थ के प्रकाशन की योजना में अनेक महानुभावों का हमें भरपूर सहयोग और प्रोत्साहन मिला है। प्रथम खण्ड के प्रकाशनावसर पर उन सबका कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करना मेरा नैतिक कर्तव्य है।
परम पूज्य प्राचार्य १०८ थी धर्मसागरजी महाराज एवं प्राचार्य कल्प १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज के प्राशीर्वचन इस सम्पूर्ण महदनुष्ठान में मुझे प्रेरित करते रहे हैं. इन साधु-गादों के चरणों में सविनय सादर नमोस्तु निवेदन करता हुआ उनके दीर्घ नीरोग जीवन की कामना करता हूं।
पूज्य भट्टारक द्वय-मूडबिद्री मठ और श्रवणबेलगोला मठ–को भी सादर वन्दना निवेदित करता हूं जिनके सौजन्य से हमें क्रमश: पाठान्तर और लिप्यन्तरण प्राप्त हो सके ताड़पत्रीय कानड़ी प्रसियों से पाठान्तर व लिप्यन्तरण भेजने वाले पण्डित द्वय श्री देवकुमारजी शास्त्री, मूडबिद्री व श्री एस. बी. देवकुमारजी शास्त्री, श्रवणबेलगोला का भी मैं अत्यन्त आभारी हूं; उनके सहयोग के बिना तो प्रस्तुत संस्करण को यह रूप कदापि मिल ही नहीं सकता था।
अन्य हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त करने में डॉ० कस्तूरचंदजी कासलीवाल (जयपुर), श्री रतनलालजी कामा (भरतपुर), पं० अरुणकुमारजी शास्त्री (व्यावर) श्री हरिचन्दजी ( उज्जैन ) और श्री विशम्बरदास महावीर प्रसाद जैन सर्राफ। दिल्ली) का सहयोग हमें प्राप्त हुआ। मैं इन सब महानुभावों का प्राभारी हूं।
आदरणीय ब० कजोड़ीमलजी कामदार ( जोबनेर ) पूज्य माताजी के साथ संघ में ही रहते हैं । ग्रन्थ के बीजारोपण से लेकर इसके वर्तमानरूप में प्रस्तुतीकरण की अवधि में मापने धैर्यपूर्वक सभी व्यवस्थाएं जुटाकर मेरे भार को काफी हल्का किया है। मैं पापके इस उदार सहयोग के लिए आपका अत्यन्त अनुगृहीत हूं ।
___ ग्रन्थ का नुरोवाक समाज के वयोवृद्ध विद्वान श्रद्धय डॉ. पन्नालालजी सा. साहित्याचार्य ने लिखकर मुझ पर जो अनुग्रह किया है, इसके लिए मैं उनका अत्यन्त आभारी हूं। पूज्य पण्डितजी की विद्वत्ता और सरलता से मैं अभिभूत हूं, मैं उनके दीर्घायुष्य की कामना करता हूं।