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गाथा : १७७-१७६ ]
तदिश्रो महाहियारो
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अर्थ :- असुरकुमारादिक दस निकायोंमें सर्वं निकृष्ट देवोंकी जधन्य श्रायुका प्रमाण दस हजार वर्ष है || १७६ ।।
असुराण पंचवीस सेस सुराणं हवंति दस दंडा । एस सहा उच्छेहो विक्किरियंगेसु बहुमेया ॥ १७७॥
दं २५ । दं १० ।
॥ उच्छेो गदो 11
प्रर्थ :-- प्रसुरकुमारोंकी पच्चीस धनुष और शेष देवोंकी ऊँचाई दस धनुष मात्र होती है. शरीर की यह ऊँचाई स्वाभाविक है किन्तु विक्रिया निर्मित शरीरोंकी ऊँचाई अनेक प्रकारकी होती है ।। १७७ ।।
|| आयुका प्रमाण समाप्त हुआ ।। भवनवासी देवोंके शरीरका उत्सेध
हो धो ।
॥ उत्सेधका कथन समाप्त हुआ ||
ऊर्ध्व दिशा में उत्कृष्ट रूपसे अवधिक्षेत्रका प्रमाण
यि निय-भवण-ठिदाणं उक्कस्से भवणवासि देवाणं ।
उद्वेग होदि णाणं कंचरण गिरि - सिहर - परियंतं ॥ १७६ ॥
अर्थ :- अपने - अपने भवनमें स्थित भवनवासी देवोंका अवधिज्ञान ऊर्ध्वदिशामें उत्कृष्टरूप से मेरुपर्वत शिखरपर्यंन्त क्षेत्रको विषय करता है ।।१७८ ॥
घः एवं तिर्यग् क्षेत्र में अवधिज्ञानका प्रमाण
तद्वाणादोधोधो थोवत्थोवं पयट्टदे श्रोही । तिरिय-सरूत्रेण पुरणो बहुत र बेत्तेसु प्रक्खलिवं ॥ १७६ ॥
१. व. रु. गदा |
२ द तट्टारणादो दोहो, ब. तट्टारणादोद्दो, क. तट्ठारणादो दो धो, ज. ठ. तट्ठाणादो