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तिलोयपत्ती
देवी'
धरणार्णवे श्रहियं वेणुम्मि हवेदि पुष्वकोडि-तियं । श्राउसंखा श्रदिरितं प । पुको ३ ।
[ गाथा : १९७२ - १७६
वेणुधारिस्स || १७२ ॥
अर्थ :- धरणानन्दकी देवियोंकी आयु पल्यके श्रायें भागसे श्रधिक, बेणुकी देवियों की तीन पर्वकोटि और गुधारीकी देवियोंकी ग्रायु तीन पूर्व कोटियोंसे अधिक है ॥ १७२ ॥
पले कमाउसंखा देवी तिष्णि वरिस- कोडोश्रो । सम्मि प्रविरित उत्तरदम्मि ॥१७३॥
दक्aिfणवे
व को ३ ।
अर्थ :- अवशिष्ट दक्षिण इन्द्रों में से प्रत्येकको तीन करोड़ वर्ष और उत्तर इन्द्रोंमेंसे प्रत्येक की देवियोंकी श्रायु इससे अधिक है ।। १७३ ॥
'पडिइंदाबि चउण्हं श्राऊ देवीण होदि पत्तेक्कं । णिय-जिय-इंद-पविण्णद- देवी श्राउस्स सारिच्छो ॥ १७४॥
अर्थ :- प्रतीन्द्रादिक चार देवोंकी देवियोंमेंसे प्रत्येकको अपने अपने इन्द्रोंकी देवियोंकी कही गई प्रायुके सहश होती है ।। १७४ ।।
जेत्तियमेत्ता श्राऊ सरीररक्खादियाण देवीणं ।
तस्स पमाण-शिरूयम उवदेसो णत्थि काल - वसा ॥ १७५ ॥
अर्थ :- अंगरक्षक श्रादिक देवोंकी देवियोंकी जितनी श्रायु होती है, उसके प्रमाणके कथनका उपदेश कालके बशसे इस समय नहीं है ।। १७५ ।।
भवनवासियों की जघन्य-आयु
प्रसुराविद ब- दस - कुलेसु सव्य- णिगिट्ठा र बस वास - सहस्साणि
जहण्ण श्राजस्त
|| आउ परिमाणं समत्तं ४ ||
होवि देवरणं । परिमाणं ॥ १७६ ॥
१. द. ब. क. ज. उ. अंदेवी । २. द. ब. क. ज. पािदि । ३. ब. क. ज. ठ. गिरिद्वारा । ४. द. ब. क. ज. ल. सम्मत्ता ।