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तिलोय पण्णत्ती
बारस-मुहुत्तयरिंग जलपह-पहुबी छस्तु उस्सासा । पण रस-मुहुत-दलं श्रमिदगदिपमुह-छहं
। मु १२ । ' ।
अर्थ :- जलप्रभाविक छह इन्द्रोंके बारह मुहूर्तोंमें और अमितगति आदि छह इन्द्रोंके साढ़ेसात मुहूतों में उच्छ्रवास होता है ।। ११७ ।।
[ गाथा : ११७-१२२
पि ।। ११७ ।।
जो प्रजुदाश्रो देवो' उस्सासा तस्स सत्त-पाणेह | ते पंच मुहुरोहि पलिदोवम श्राउ- जुत्तस्स ॥ ११८ ॥
अर्थ :
-जो देव प्रयुत ( दस हजार ) वर्ष प्रमाण आयुवाले हैं उनके सात स्वासोच्छ्वासप्रमाण कालमें और पल्योपम-प्रमाण प्रयुसे युक्त देवके पाँच मुहूर्त में उच्छ्वास होते हैं ।। ११८ ।।
प्रतीन्द्रादिकोंके उच्छ्रवासका निरूपण
पडियापिण्डं वस्तरा हवंति उत्तारू 1 तरवव-पहुदीसु उवएसो संपइ पणट्टो ॥ ११६ ॥
अर्थ :- प्रतीन्द्रादिक चार-देवों के उच्छ्वास इन्द्रोंके सहशही होते हैं । इसके आगे तनुरक्षकादि देवों में उच्छ्वास - काल के प्रमाणका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ।। ११९ ।।
असुरकुमारादिकोंके वर्णों का निरूपण
सच्चे असुरा किव्हा हवंति णागा वि कालसामलया । दीवकुमारा सामल - वण्णा सरीरेहिं ।।१२०।।
गरुडा
उदहि-त्थणिदकुमारा ते सन्वे कालसामलायारा । विज्जू विज्जु- सरिच्छा सामल-बपणा दिसकुमारा ॥१२१॥
कुमारा सन्बे जलंत - सिहिजाल-सरिस - दिति-धरा । जय कुवलय- सम भासा वादकुमारा वि णादव्या ॥ १२२ ॥
१. ब.उ. देश्रो, क. ज. देउ । २. ब. क. पलिदोवमयाबजुत्तस्स, द ज ठ पलिदोब मयाह जुत्तस्स | ३. द. ब. ज. ठ. उदधिरिद ।