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गाथा : ११३-११६ ]
तदिनो महाहियारो बारस-विणेसु जलपह-पहुदी-छण्हं पि भोयणावसरो। पण्णरस-वासर-दलं अमिदगदि-प्पमुह-छक्कम्मि ॥११३॥
। १२ । १५ । अर्थ : जलप्रभादिक छह इन्द्रोंके बारह दिनके अन्तरालसे और अमितगति आदि छह इन्द्रोंके पन्द्रहके आधे (७३ ) दिनके अन्तरलसे पाहारका अवसर प्राता है ॥११३॥
इंदादी पंचाणं सरिसो आहार-काल-परिमाणं ।
तणुरक्ख-प्पहुदीणं तस्सि उवदेस-उच्छिण्णो' ॥११४॥
प्रर्थ :-इन्द्रादिक पाँच (इन्द्र, प्रतीन्द्र. सामानिक, प्रायस्त्रिश और पारिषद) के आहारकालका प्रमाण सदृश है । इसके प्रागे तनुरक्षकादि देवोंके आहार-कालके प्रमाणका उपदेश नष्ट हो गया है 11११४॥
दस-यरिस-सहस्साऊ जो देवो तस्स भोयणावसरो। दोसु विवसेसु पंचसु पल्ल- पमाणाउ-जुत्तस्स ॥११५॥'
अर्थ :-जो देव दस-हजार वर्षकी आयुवाला है उसके दो दिनके अन्तरालसे और पल्योपम-प्रमाणसे संयुक्त देवके पाँच दिनके अन्तरालसे भोजनका अवसर प्राता है ॥११५।।
भवरावासियोंमे उच्छ्वासके समयका निरूपण चमर-दुगे उस्सासं पण्णरस-दिणाणि पंचवीस-दलं । पुह-पुह "मुहत्तयाणि भूदाणंदादि-छक्कम्मि ॥११६॥
। दि १५ । मु ३ । प्रय :-चमरेन्द्र एवं वैरोचन इन्द्रोंके पन्द्रह दिनमें तथा भूतानन्दादिक छह इन्द्रोंके पृथकपृथक् साढ़े बारह-मुहूर्तोमें उच्छ्वास होता है ।।११६।।
१. ६. भ. क. ज ठ. उच्छिण्णा । २. प. पमाणावजुत्तस्स । ३. मूल प्रतिमें यह गाथा संरूपण ११७ है किन्नु विषय-प्रसंगके कारण यहाँ दी गई है। ४. ब. पणरस । ५. ब. मुहत्तयाग ।