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तिलोय पण्णत्ती
पउमा पउम सिरीश्री कणयसिरो करणयमाल-महपउमा । अग्ग- महिसीउ बिदिए विविकरिया पहुवि पुखं व' ॥६४॥
अर्थ :- द्वितीय (वैरोचन ) इन्द्र के पद्मा पद्मश्री, कनकश्री कनकमाला और महापद्मा, ये पाँच अग्र देवियाँ होती हैं, इनके विक्रिया श्रादिका प्रमाण पूर्व ( प्रथम इन्द्र) के सदृश ही जानना चाहिए ।। ६४ ।।
पण अग्ग - महिसियाओ पत्तं क्कं बल्लहा दस सहस्ता । णागिदाणं होंति हु विविकरियप्पहृदि पुरुषं व ॥६५॥
[ गाथा : ६४-६७
५ | १०००० ४०००० | ५०००० ।
अर्थ :- नागेन्द्र ( भूतानन्द और धरणानन्द ) मेंसे प्रत्येककी पांच अग्र देवियाँ श्रोर दस हजार वल्लभाएँ होती हैं। शेष विक्रिया आदिका प्रमाण पूर्ववत् ही है ||२५||
चत्तारि सहस्सा रिंग यल्लहियात्री हवंति गरुडदाणं सेसं पुन्वं पिव एत्थ
५४००० | ४०००० | ४४०००
पत्त वकं । वक्तव्यं ॥६६॥
अर्थ :--गरुडेन्द्रोंमेंसे प्रत्येककी चार हजार वल्लभायें होती हैं । यहाँ पर शेष कथन पूर्वके सदृश ही समझना चाहिए ||३६||
सेसारणं इंदारणं पतक्कं पंच प्रग्ण महिसीओो ।
एदेसु
छस्सहस्सा स-समं परिवार देवी ॥ ६७ ॥
१. द. वा । क्र. ज. ठ. च । २. द. वाक. च
५ । ६००० | ३०००० ।
अर्थ :-- शेष इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके पांच अग्र देवियां और उनमेंसे प्रत्येकके अपने (मूल शरीर ) को सम्मिलित कर छह हजार परिवार देवियाँ होती हैं ।। ६७ ॥
३. द. व. गरुरंगदारण। ज. द. गाणं